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________________ भगवती सूत्र-श. ३३ अवान्तर शतक ६ ३६७९ ४ उत्तर-हे गौतम ! औधिक उद्देशक के अनुसार इस अमिलाप से यावत् 'वेवते हैं' तक कहना चाहिये। . ५ प्रश्न-कइविहा णं भंते ! अणंतगेववण्णगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया पण्णता ? ५ उत्तर-गोयमा ! पंचविहा अणंतरोववण्णगा० जाव वणस्सइ. काइया। भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! अनन्तरोपपत्रक कृष्णलेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? ५ उत्तर-हे गौतम ! पांच प्रकार के कहे हैं। यथा-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। ६ प्रश्न-अणंतरोववण्णगकण्हलेस्सभवसिद्धियपुढविकाइया णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? - ६ उत्तर-गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमपुढविकाइया एवं दुयओ भेओ। भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक कृष्णलेश्या वाले भव. सिद्धिक पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? .. ६ उत्तर-हे गौतम ! दो प्रकार के कहे हैं । यथा-सूक्ष्म पृथ्वीकायिक और बादर पृथ्वोकायिक । इस प्रकार दो भेद कहने चाहिये । ७ प्रश्न-अणंतरोववण्णगकण्हलेस्सभवसिद्धियसुहमपुढविकाह. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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