SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 529
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - श. ३३ अवान्तर शतक ७ या भंते! कह कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ ? ७ उत्तर - एवं एएवं अभिलावेणं जहेन ओहिओ अनंतशेववण्णउद्देओ तव जाव वेदेति । एवं एएवं अभिलावेणं एकारस वि उद्देगा तव भाणियव्वा जहा ओहियसर जाव 'अचरिमो' त्ति !. ॥ छ एर्गिदियसयं समत्तं ॥ भावार्थ - ७ प्रश्न - हे भगवन ! अनन्तरोपपन्नक कृष्णलेश्या वाले भवसिद्धिक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव के कर्म प्रकृतियाँ कितनी कही हैं ? ७ उत्तर-ह गौतम ! अनन्तरोपपत्रक के औधिक उद्देशक के अनुसार, यहां भी थावत् 'वेदते हैं' तक। इसी अभिलाप से औधिक शतक के अनुसार ग्यारह उद्देशक यावत् 'अचरम' उद्देशक पर्यन्त' । ॥ तेतीसवें शतक का छठा अवान्तर शतक सम्पूर्ण ॥ अवांतर शतक ७ “जहा कण्हलेस्सभवसिद्धिएहिं सयं भणियं एवं नीललेस्सभवसिद्धिएहि विसयं भाणियां | ३६८० || सत्तमं एगिंदियसयं समत्तं ॥ - कृष्णलेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय शतक के अनुसार नीललेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय के विषय में भी शतक कहना चाहिये । ॥ तेतीसवें शतक का सातवां अवान्तर शतक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy