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भगवती सूत्र-श. ३३ अवांतर शतक ५
ति अभिलावो भाणियव्यो।
॥ चउत्थं एगिंदियसयं ममत्तं ॥ भावार्थ-१-कापीत लेश्या के विषय में भी इसी प्रकार शतक कहना चाहिये, किन्तु 'कापोत लेश्या' ऐसा पाठ कहना चाहिये । ३३-४ ।
| অনুতন হানক ৭ १ प्रश्र-कहविहा णं भंते ! भवसिद्धिया एगिंदिया पण्णता ?
१ उत्तर-गोयमा ! पंचविहा भवसिद्धिया एगिंदिया पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया, भेओ चउक्काओ जाव वणस्सइकाइय ति।
२ प्रश्न-भवसिद्धिय-अपजत्त-सुहम-पुढविकाइयाणं भंते ! का कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ?
२ उत्तर-एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमिल्लगं एगिदियसयं तहेव भवसिद्धियसयं पि भाणियव्वं । उद्देसगपरिवाडी तहेव जाव अचरिमो त्ति । 'सेवं भंते ।
॥पंचमं एगिंदियसयं समत्तं ॥ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! भवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के
१ उत्तर-हे गौतम ! भवसिद्धिक एकेन्द्रिय पांच प्रकार के कहे हैं। यथा-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक । इनके चार भेव आदि वक्तव्यता वनस्पतिकायिक पर्यन्त ।
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