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________________ ३६७६ भगवती सूत्र-श. ३३ अवांतर शतक ५ ति अभिलावो भाणियव्यो। ॥ चउत्थं एगिंदियसयं ममत्तं ॥ भावार्थ-१-कापीत लेश्या के विषय में भी इसी प्रकार शतक कहना चाहिये, किन्तु 'कापोत लेश्या' ऐसा पाठ कहना चाहिये । ३३-४ । | অনুতন হানক ৭ १ प्रश्र-कहविहा णं भंते ! भवसिद्धिया एगिंदिया पण्णता ? १ उत्तर-गोयमा ! पंचविहा भवसिद्धिया एगिंदिया पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया, भेओ चउक्काओ जाव वणस्सइकाइय ति। २ प्रश्न-भवसिद्धिय-अपजत्त-सुहम-पुढविकाइयाणं भंते ! का कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ? २ उत्तर-एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमिल्लगं एगिदियसयं तहेव भवसिद्धियसयं पि भाणियव्वं । उद्देसगपरिवाडी तहेव जाव अचरिमो त्ति । 'सेवं भंते । ॥पंचमं एगिंदियसयं समत्तं ॥ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! भवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के १ उत्तर-हे गौतम ! भवसिद्धिक एकेन्द्रिय पांच प्रकार के कहे हैं। यथा-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक । इनके चार भेव आदि वक्तव्यता वनस्पतिकायिक पर्यन्त । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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