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भगवती सूत्र-श. ३३ अवान्तर शतक २
कइ कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ ?
२ उत्तर--एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिओ अणंतरोववण्णगाणं उद्देसओ तहेव जाव वेदेति । 'सेवं भंते । ___भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक कृष्णलेश्या वाले सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव के कर्म-प्रकृतियां कितनी कही हैं ?
२ उत्तर-हे गौतम ! पूर्वोक्त अभिलाप से औधिक अनन्तरोपपन्नक उद्देशक के अनुसार यावत् 'वेवते हैं' तक । ३२-२-२।।
- १ प्रश्न कइविहा गं भंते ! परंपरोववण्णगा कण्हलेस्सा एगिदिया पण्णत्ता ?
१ उत्तर-गोयमा ! पंचविहा परंपरोववण्णगा कण्हलेस्सा एगिदिया पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया-एवं एएणं अभिलावेणं तहेव चउको भेओ जाव वणस्सइकाइय ति ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! परम्परोपपन्नक कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! परम्परोपपन्नक कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे हैं। यथा-पृथ्वीकायिक आदि । इस अभिलाप से उसी प्रकार चार भेद यावत् वनस्पतिकायिक पर्यन्त ।
२ प्रश्न-परंपरोववण्णगकण्हलेस्सअपज्जत-सुहम-पुढविकाइयाणं भंते ! कह कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ।
२ उत्तर-एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ परंपरोववण्णग
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