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________________ भगवती सूत्र - श. ३३ अवान्तर शतक २ ४ प्रश्न–कण्हलेस्सअपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयाणं भंते ! कइ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? १६७३ ४ उत्तर--एवं चेव एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसए तहेब पण्णत्ताओ, तहेव बंधंति, तहेव वेदेति । 'सेवं भंते ० ' । भावार्थ - ४ प्रश्न - हे भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव के कर्म - प्रकृतियां कितनी कही हैं ? ४ उत्तर - हे गौतम! औधिक उद्देशक के अनुसार, उसी अभिलाप से कर्म-प्रकृतियां कहनी चाहिये, तथा उसी प्रकार उनका बन्ध और वेदन भी कहना चाहिये । ३३-२-१ । १ प्रश्न - - कहविहा णं भंते ! अनंतरोववण्णगकण्ह लेस्सएगिंदिया पण्णत्ता ? १ उत्तर - गोयमा ! पंचविद्या अनंतशेववण्णग़ा कण्हलेरसा - एगिंदिया एवं एएवं अभिलावेणं तहेव दुयओ भेओ जाव वणरसहकाइति । भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? Jain Education International १ उत्तर - हे गौतम ! अनन्तरोपपन्नक कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे हैं । इस अभिलाप से पूर्वोक्त रूप से दो भेद यावत् वनस्पतिकायिक पर्यन्त । २२ प्रश्न - अणंतरोववण्णग कण्हले रससुहमपुढविकाइयाणं भंते ! For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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