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भगवती सूत्र - श ३२ उ. १-२८ उन
२ उत्तर - गोयमा ! चत्तारि वा अट्ट वा वारस वा सोलस वा संखेजा वा असंखेजा वा उब्वति ।
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भावार्थ - २ प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उद्वर्तते ( मरते ) हैं २ उत्तर - हे गौतम! चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उद्वर्तते हैं ।
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३ प्रश्न - ते णं भंते ! जीवा कहं उब्वनंति ?
३ उत्तर - गोयमा ! से जहाणामए पवए० एवं तहेव । एवं सो चैव गमओ जाव आयप्पओगेणं उब्वनंति णो परप्पओगेणं उब्वति ।
भावार्थ - ३ प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव किस प्रकार उद्वर्तते है ? ३ उत्तर - हे गौतम ! जिस प्रकार कोई कुंदने वाला इत्यादि पूर्ववत्, यावत् वे आत्म-प्रयोग से उद्धर्तते हैं, पर प्रयोग से नहीं ।
४ प्रश्न - रयणप्पभापुढविखुड्डागकड० ?
४ उत्तर - एवं रयणप्पभाए वि, एवं जाव अहेसत्तमाए । एवं खुड्डागतेओग खुड्डागदावर जुम्म- खुड्डाग कलिओगा । णंवरं परिमाणं जाणियव्वं सेसं तं चैव 'सेवं भंते ०' । ३२-१ ।
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भावार्थ - ४ प्रश्न - हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म राशि प्रमाण नैरयिक वहां से उद्धर्तित हो कर तुरन्त कहां जाते हैं, कहां उत्पन्न होते हैं ? ४ उत्तर- हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरथिक की उद्वर्तना के अनुसार, यावत् अधः सप्तम पृथ्वी तक की उद्वर्तना पर्यन्त । इसी प्रकार
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