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________________ भगवती सूत्र - श. ३२ उ. १-२८ उद्वर्तन क्षुद्रत्र्योज, क्षुद्रद्वापरयुग्म और क्षुद्रकल्योज के विषय में भी जानना चाहिये । परिमाण पूर्ववत् अपना-अपना पृथक्-पृथक् कहना चाहिये । शेष पूर्ववत् । ३२-१० ३६६० ५ - कण्हलेस कडजुम्मणेरइया एवं एएणं कमेणं जहेव उव वायसर अट्ठावीस उद्देगा भणिया तहेव उव्वट्टणासए वि अट्ठावीसं उद्देगा भाणियव्वा णिरवसेसा । णवरं 'उब्वनंति' त्ति अभिलावो भाणियव्वो, सेसं तं चैव । 'सेवं भंते! सेवं भंते !' ति ॥ बत्तीसइमं उब्वट्टणासयं समत्तं ॥ भावार्थ - ५ प्रश्न - हे भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म राशि प्रमाण नैरकि वहाँ से निकल कर तुरन्त कहां जाते हैं, कहां उत्पन्न होते हैं ? ५ उत्तर- इसी क्रम से उपपात शतक के अट्ठाईस उद्देशक के समान, उद्वर्तना शतक के भी अट्ठाईस उद्देशक जानना चाहिये । अन्तर यह है कि ' उत्पन्न होते हैं' के स्थान पर 'उद्वर्तते हैं' - कहना चाहिये । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।. 77 मनुष्य विवेचन--नरक से निकल कर जीव पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले और तिर्यंच में उत्पन्न होते हैं । ॥ बत्तीसवें शतक के १ - २८ उद्देशक सम्पूर्ण ॥ ॥ बत्तीसवाँ सतक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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