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शतक ३२
(उद्वर्तन शतक)
उद्देशक १-२८
१ प्रश्न-खुड्डागकडजुम्मणेरइया णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छति, कहिं उववज्जति ? किं णेरइएसु उववज्जति ? तिरिक्खजोणिएसु उवक्वज्जति ? .
१ उत्तर-उव्वट्टणा जहा वक्कंतीए। कठिन शब्दार्थ--उव्वट्टित्ता--उद्वर्तित होकर--वहाँ से निकल कर ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म राशि प्रमाण नैरपिक वहां से उर्तित हो कर (निकल कर-मर कर) तुरन्त कहां जाते हैं और कहां उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिक में उत्पन्न होते हैं अथवा तिर्यञ्च-योनिक में उत्पन्न होते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्ति पद के अनुसार। २ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उव्वटुंति ?
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