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भगवती सूत्र श. ३१ उ. ६ कृष्णलेशी भवसिद्धिक की उत्पत्ति
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२ उत्तर-एवं चेव, णिरवसेसं, एवं जाव अहेमत्तमाए । एवं भव. सिद्धियखड्डागतेओगणेरड्या वि। एवं जाव कलिओग ति । णवरं परिमाणं जाणियव्वं, परिमाणं पुब्वभणियं जहा पढमुद्देसए । _ 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति ®..
॥ इकतीसइमे सए पंचमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म राशि प्रमाण भवसिद्धिक नरयिक कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ?
२ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत्, यावत् अधःसप्तम पृथ्वी तक। इसी प्रकार भवसिद्धिक क्षुद्रव्योज राशि प्रमाण नरयिक के विषय में यावत् कल्योज पर्यन्त जानना चाहिये । परिमाण प्रथम उद्देशक के अनुसार।
___हे भगवन ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
॥ इकत्तीसवें शतक का पांचवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक ३१ उद्देशक
कृष्णलेशी भवसिद्धिक की उत्पत्ति
१ प्रश्र-कण्हलेसभवसिद्धियखुड्डागकाडजुम्मणेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति ?
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