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________________ भगवती सूत्र-श. २५ उ. १ योगों का अल्प-बहुत्व ____४ प्रश्न-दो भंते ! णेरइया पढमसमयोववण्णगा कि समजोगी, किं विसमजोगी ? ४ उत्तर-गोयमा ! सिय समजोगी, सिय विसमजोगी। प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-सिय समजोगी, सिय विसमजोगी' ? . उत्तर-गोयमा ! आहारयाओ वा से अगाहारए, अणाहारयाओ वा से आहारए सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अभहिए । जइ होणे असंखेजहभागहीणे वा, संखेजइभागहीणे वा, असंखेजगुणहीणे वा, संखेजगुणहीणे वा । अह अब्भहिए असंखेजइभागमभहिए वा, संखेजइभागमभहिए वा, संखेजगुणमभहिए वा, असंखेजगुणमन्भहिए वा, से तेणटेणं जाव सिय 'विसमजोगी। एवं जाव वेमाणियाणं। . भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रथम समय उत्पन्न दो नैरयिक समयोगी होते हैं या विषमयोगी ? . ४ उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् समयोगी और कदाचित् विषमयोगी होते हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया कि-कदाचित् समयोगी और कदाचित् विषमयोगी होते हैं ? उत्तर-हे गौतम ! आहारक नारक से अनाहारक नारक और अनाहारक से आहारक नारक कदाचित् हीन-योगी, कदाचित् तुल्य-योगी और कदाचित् अधिक योगी होता है। यदि वह हीन-योगी होता है, तो असंख्यातवें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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