SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श २५ उ. १ योगों का अल्प-बहुत्व जीवों के जघन्य और उत्कृष्ट योग से कौन जीव, किन से अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? ३ उत्तर-हे गौतम ! १ अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का जघन्य योग सब से अल्प है । २ उससे अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुण है। ३ उससे अपर्याप्त बेइन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुण है । ४ उससे अपर्याप्त तेइन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुण है । ५ उससे अपर्याप्त चौरिन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुण है। ६ उससे अपर्याप्त असंज्ञी पंचे. न्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुण है । ७ उससे अपर्याप्त संज्ञी पञ्चेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुण है । ८ उससे पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुण है । ९ उससे पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुण है । १० उससे अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है। ११ उससे अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है । १२ उससे पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है । १३ उससे पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है। १४ उससे पर्याप्त बेइन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुण है । १५-१८ उससे पर्याप्त तेइन्द्रिय, पर्याप्त चौरिन्द्रिय, पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय और पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य योग उत्तरोत्तर असंख्यात गुण है। १९ उससे अपर्याप्त बेइन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है । २०-२३ इसी प्रकार अपर्याप्त तेइन्द्रिय, अपर्याप्त चौरिन्द्रिय, अपर्याप्त असंज्ञो पञ्चेन्द्रिय और अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग उत्तरोत्तर असंख्यात गुण है। २४ उससे पर्याप्त बेइन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है । २५ इसी प्रकार अपर्याप्त तेइन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है। २६ उससे पर्याप्त चौरिन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है । २७ उससे पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है । २८. उससे पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy