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________________ भगवती गूग-श. ३० उ. १ क्षुद्रयुग्म ३६४५ छह, दस, चौदह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । शेष पूर्ववत्, यावत् अधःमप्तम पृथ्वी पर्यन्त । ९ प्रश्न-खुड्डागकलियोगणेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति ? ९ उत्तर-एवं जहेव खुड्डागकडजुम्मे । णवर परिमाणं एको वा पंच वा णव वा तेरस वा संखेजा वा असंखेना वा उववज्जति सेसं तं चेव । एवं जाव अहेसत्तमाए । * 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति २ जाव विहरइ * ॥ इकतीसइमे सए पढमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्षुद्र कल्योज राशि प्रमाण नैरयिक कहाँ से आ. र उत्पन्न होते हैं ? ९ उत्तर-हे गौतम ! क्षुद्रकतयुग्म राशि के अनुसार । परिमाण एक, पांच, नौ, तेरह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । शेष पूर्ववत् यावत् अधः सप्तम पृथ्वी पर्यन्त । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। - विवेचन-लघु (अल्प ) संख्या वाली राशि को 'क्षुद्रयुग्म' कहते हैं । इनमें से चार, आठ, बारह आदि संख्या वाली राशि 'क्षुद्रकृतयुग्म' कहलाती है। तीन, सात, ग्यारह आदि संख्या वाली राशि 'क्षुद्रयोज' कहलाती है । दो, छह, दस आदि संख्या वाली राशि 'क्षुद्रद्वापरयुग्म' कहलाती है । एक, पाँच, नौ आदि संख्या वाली राशि'क्षुद्रकल्योज' कहलाती है। ॥ इकत्तीसवें शतक का प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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