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भगवती सूत्र-श. ३० उ. १ ममवसरण
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मिच्छदिट्ठी जहा कण्हपक्खिया। सम्मामिच्छादिट्टी ण य एक्कं पि पकरेंति जहेव गेरइया । णाणी जाव ओहिणाणी जहा सम्मदिट्टी। अण्णाणी जाव विभंगणाणी जहा कण्हपक्खिया । सेसा जाव अणागारोवउत्ता सब्वे जहा सलेस्मा तहा चेव भाणियव्वा । जहा पंचिंदिय- .. तिरिक्खजोणियाणं वत्तव्वया भणिया एवं मणुम्साण वि भाणियव्वा, णवरं मणपजवणाणी णोमण्णोवउत्ता य जहा सम्मदिट्ठी तिग्विखजोणिया तहेव भाणियव्वा । अलेस्सा केवलणाणी अवेयगा अकसायी अजोगी य एए ण एगं पि आउयं पकरेंति । जहा ओहिया जीवा सेसं तहेव । वाणमंतर-जोइसिय वेमाणिया जहा असुरकुमाग।
भावार्थ-२९ प्रश्न-हे भगवन् ! कृष्णलेशी क्रियावादी पञ्चेन्द्रिय तियंच जीव, नरयिक का आयु बांधते हैं. ? .
२९ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक, तियंच, मनुष्य और देव, किसी का भी आयु नहीं बाँधते । अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी चारों प्रकार का आयु बांधते हैं । नीललेशी और कापोतलेशो भी कृष्णलेशी के समान है। तेजोलेशी का बन्ध, सलेशी के समान है, परन्तु अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी जीव, नैरयिक का आयु नहीं बांधते । देव, तियंच और मनुष्य का आयु बांधते हैं। इसी प्रकार पद्मलेशी और शुक्ललेशी भी जानना चाहिये । कृष्णपाक्षिक, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी, चारों प्रकार का आयु बांधते हैं । शुक्लपाक्षिक का कथन सलेशी के समान है । सम्यग्दष्टि, मनःपर्यव शानी के सदृश वैमानिक का आयु बांधता है। मिथ्यादृष्टि, कृष्णपाक्षिक के तुल्य है । सम्यगमिथ्यावृष्टि जीव, एक भी आयु नहीं बांधते । उनमें नरयिक के समान दो समवसरण होते हैं । ज्ञानी यावत् अवधिज्ञानी का आयु बन्ध सम्यग
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