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भगवती सूत्र-श. ३० उ. १ समवमरण
सागारोवउत्ता य अणागारोवउत्ता य जहा सलेस्सा।
भावार्थ-२२ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे देव का आय बांधते हैं, तो क्या मवनपति देव यावत् वैमानिक देव का आयु बांधते हैं ?
...२२ उत्तर-हे गौतम ! वे भवनपति, वाणव्यन्तर और ज्योतिषी देव का ., आयु नहीं बांधते, परन्तु वैमानिक देव का आयु बांधते हैं । केवलज्ञानी का कथन
अलेशी जीव के समान है। अज्ञानी यावत् विभंगज्ञानी, कृष्णपाक्षिक के समान है। आहारादि चारों संज्ञा वाले जीव, सलेशी जीव के समान है । नोसंजोपयुक्त जीव, मनःपयंब ज्ञानी के समान है। सवेदी यावत् नपुंमक वेदी जीव, सलेशी जीव के समान है। अवेदी जीव, अलेशी के समान है । सकषायी यावत् लोमकषायी जीव, सलेशी जीव के सदृश है । अकषायी, अलेशी के तुल्य है। सयोगी यावत् काययोमी, सलेशीवत् हैं । अयोगी, अलेशी के समान है। साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव, सलेशी के समान है।
विवेचन--यहां कहा है कि क्रियावादी जीव, नैरयिक और तिर्यच का आय नहीं बांधते, किन्तु मनुष्य और देव का आयु बांधते हैं । इसका आशय यह है कि जो नैरयिक
ओर देव क्रियावादी हैं. वे मनुष्य का आयु बांधते हैं और जो मनुष्य और पंचेन्द्रिय तियंच क्रियावादी हैं, वे देव का आयु बांधते हैं।
कृष्णलेशी क्रियावादी जीव, नैरयिक, तियंच और देव का आयु नहीं बांधते, किन्तु एक मनुष्य का आयु बांधते हैं । यह कथन नैरयिक और असुरकुमारादि की अपेक्षा समझना चाहिये, क्योंकि जो कृष्णलेशी, सम्यग्दष्टि मनुष्य और पंचेन्द्रिय तियंच हैं, वे मनुष्य का आयु तो बांधते ही नहीं हैं, वैमानिक का आयु कृष्णादि तीन लेश्या में बंधता नहीं है ।
___ अलेशी जीव, अयोगी और सिद्ध होते हैं । अतः वे किसी भी प्रकार का आयु नहीं
बांधते ।
....... 'सम्यगमिथ्यादृष्टि जीव का कथन अलशी के समान है-ऐसा जो कहा है, इसका आशय यह है कि अलेशी जाव जो सिख है, वे तो कृत-कृत्य होने से एवं कर्मों का समूल क्षय करने से आयु-कर्म का बन्ध नहीं करते और अयोगी जीव भी उसी भव में मोक्ष प्राप्त करने है, इसलिये वे भी किसी प्रकार का आयु नहीं बांधते, इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव भी सम्यगमिथ्यादृष्टि अवस्था में किसी प्रकार के आयु का बन्ध नहीं करते हैं ।
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