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________________ ३६२० भगवती सूत्र-श. ३० उ. १ समवसरण एवं अण्णाणियवाई वि, वेणइयवाई वि । सुक्कपक्खिया जहा सलेस्सा। भावार्थ-१८ प्रश्न-हे भगवन् ! कृष्णपाक्षिक अक्रियावादी जीव, नैरयिक का आयु बांधते हैं ? १८ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिक, तिथंच आदि चारों प्रकार का आय बांधते हैं। इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक अज्ञानवादी और विनयवादी भी । शुक्लपाक्षिक, सलेशी जीव के समान बन्ध करते हैं । १९ प्रश्न-सम्मदिट्ठी णं भंते ! जीवा किरियावाई किं गेरइया. उयं-पुच्छा । १९ उत्तर-गोयमा ! णो णेरइयाउयं पकरेंति, णो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पकरेंति, देवाज्यं पि पकरेंति । मिच्छादिट्ठी जहा कण्हपक्खिया । भावार्थ-१९ प्रश्न हे भगवन् ! सम्यगदष्टि क्रियावादी जीव, नैरयिक का आयु बांधते हैं ? .. १९ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिक और तियंच का आय नहीं बांधते, किन्तु मनुष्य और देव का आयु बांधते हैं। मिथ्यादृष्टि क्रियावादी का बन्ध कृष्णपाक्षिक के समान है। २० प्रश्न-सम्मामिच्छादिट्टी णं भंते ! जीवा अण्णाणियवाई कि णेरड्याउयं० ? २० उत्तर-जहा अलेस्सा । एवं वेणइयवाई वि । णाणी आभिणि बोहियणाणी य सुयणाणी य ओहिणाणी य जहा सम्मदिट्ठी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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