SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - श ३० उ. १ समवसरण हैं। यथा- क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी । इनका स्वरूप इस प्रकार है १. क्रियावादी - कर्ता के बिना क्रिया सम्भव नहीं है इसलिए 'क्रिया का जो कर्त्ता है, वह आत्मा है - इस प्रकार आत्मा के अस्तित्व को मानने वाले क्रियावादी हैं । अथवा 'क्रिया ही प्रधान है, ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं है इस प्रकार क्रिया को प्रधान मानने वाले 'क्रियावादी' कहलाते हैं । अथवा एकान्त रूप से जीव अजीव आदि पदार्थों के अस्तित्व को मानने वाले क्रियावादी कहलाते हैं । इनके १८० भेद हैं। यथा जीव, अजीव, आश्रव, बन्ध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा और मोक्ष, इन नौ पदार्थों कै स्व और पर से अठारह भेद होते हैं । इन अठारह के नित्य और अनित्य रूप से ३६ भेद होते हैं । इनमें से प्रत्येक के काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा की अपेक्षा पाँच-पाँच भेद करने से १८० भेद होते हैं । ३६१३ जैसे- जीव स्व स्वरूप से काल की अपेक्षा नित्य है और अनित्य भी है। जीव पर रूप से काल की अपेक्षा नित्य है और अनित्य भी है। इस प्रकार काल की अपेक्षा चार भेद होते हैं । इसी प्रकार नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा की अपेक्षा भी जीव के चार-चार भेद हैं । इस प्रकार जीवादि नौ तत्त्वों के प्रत्येक के बीस-बीस भेद होने से . कुल १८० भेद होते हैं । Jain Education International 8 २ अक्रियावादी -- अक्रियावादी की भी अनेक व्याख्याएँ हैं । यथा- किसी भी अनस्थित पदार्थ में क्रिया नहीं होती । यदि पदार्थ में क्रिया होगी, तो वह अनवस्थित नहीं होगी । इस प्रकार पदार्थों को अनवस्थित मान कर उनमें क्रिया का अभाव मानने वाले 'अक्रियावादी' कहलाते हैं । अथवा क्रिया की आवश्यकता ही क्या है ? केवल चित्त की पवित्रता होनी चाहिये । इस प्रकार मात्र ज्ञान से ही मोक्ष की मान्यता वाले 'अक्रियावादी' कहलाते हैं । जीवादि के अस्तित्व को नहीं मानने वाले 'अक्रियावादी' कहलाते हैं । इनके ८४ -भेद हैं। यथा-जीव, अजीव, आश्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष, इन सात तत्त्वों के और पर के भेद से चौदह भेद होते हैं। काल, यदुच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा, इन छह की अपेक्षा चौदह भेदों का वर्णन करने से ८४ भेद होते हैं । जैसे- जीव, स्वतः काल से नहीं है जीव परतः काल से नहीं है । इस प्रकार काल की अपेक्षा जीव के दो भेद हैं | काल के समान यदृच्छा, नियति आदि की अपेक्षा भी जीव के दो-दो भेद हैं । इस प्रकार जीव के बारह भेद हैं। जीव के समान शेष छह तत्त्वों के भी बारह-बारह A For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy