SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संसारी जीवों के चौदह भेद २ प्रश्न - कविहाणं भंते ! संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ? २ उत्तर - गोयमा ! चोद्दसविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा - १ सुहुम अपज्जत्तगा २ सुहुमपज्जत्तगा ३ बायरअपजत्तगा ४ बायरपज्जत्तगा ५ बेइंदिया अपज्जत्तगा ६ बेइंदिया पज्जत्तगा ७ - ८ एवं इंदिया ९-१० एवं चउरिंदिया ११ असष्णिपंचिंदिया अपज्जत्तगा १२ असणिपंचिंदिया पज्जत्तगा १३ सष्णिपंचिंदिया अपज्जत्तगा १४ सष्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा । भावार्थ - २ प्रश्न - हे भगवन् ! संसारसमापत्रक ( संसारी) जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? २ उत्तर - हे गौतम ! संसारसमापन्नक जीव चौदह प्रकार के कहे हैं । यथा - १ अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय २ पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय ३ अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय ४ पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय ५ अपर्याप्त बेइंद्रिय ६ पर्याप्त बेइंद्रिय ७ अपर्याप्त तेइंद्रिय ८ पर्याप्त तेइंद्रिय ९ अपर्याप्त चौरिन्द्रिय १० पर्याप्त चौरिन्द्रिय ११ अपर्याप्त असज्ञी पंचेन्द्रिय १२ पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय १३ अपर्याप्त संज्ञी पञ्चेन्द्रिय और १४ पर्याप्त संज्ञी पञ्चेन्द्रिय । विवेचन - 'सूक्ष्म' - सूक्ष्म नाम-कर्म के उदय से जिन जीवों का शरीर अत्यन्त सूक्ष्म अर्थात् असंख्य शरीर इकट्ठे होने पर भी जो चक्षु आदि इन्द्रियों का विषय न हो, उसे 'सूक्ष्म' कहते हैं । ' बादर' - बादर नाम - कर्म के उदय से बादर अर्थात् स्थूल शरीर वाले जीव बादर कहलाते हैं । 'पर्याप्तक' - जिस जीव में जितनी पर्याप्तियाँ सम्भव हैं, वह जब उतनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy