________________
३१९८
भगवती सूत्र-शः २५ उ. १ योगों का अल्प-बहुत्व
www
पर्याप्तियां पूरी कर लेता है, या करने की योग्यता हो, उसे 'पर्याप्त' कहते हैं । एकेंद्रिय जीव आहार, शरीर, इन्द्रिय और श्वासोच्छ्वास-इन चार पर्याप्तियों को पूरी करने पर, बेइंद्रिय, तेइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय, उपर्युक्त चार पर्याप्तियों और पांचवीं भाषा पर्याप्ति पूरी करने पर तथा संज्ञी पञ्चेन्द्रिय उपर्युवत पाँच और छठी मन:पर्याप्ति पूरी करने पर 'पर्याप्तक' कहे जाते हैं।
'अपर्याप्तक'- जिस जीव की पर्याप्तियां पूरी न हुई हों अर्थात् जिस जीव ने स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूरा न बांध लिया हो और जो स्वयोग्य पर्याप्तियां पूरी होने से पहले ही मरने वाला हो, वह अपर्याप्तक' कहलाता है। अपर्याप्त अवस्था में मरने वाले जीव तीन पर्याप्तियां पूर्ण कर के चौथी (श्वासोच्छ्वास) पर्याप्ति अधूरी रहने पर ही मरते हैं, पहले नहीं । क्योंकि आगामी भव की आयु बाँध कर ही जीव मृत्यु प्राप्त करते हैं और आयु का बन्ध उन्हीं जीवों के होता है, जिन्होंने आहार, शरीर और इन्द्रिय-ये तीन पर्याप्तियाँ पूर्ण कर ली हों।
__ सूक्ष्म, बादर, अपर्याप्त और पर्याप्त-ये चार भेद एकेन्द्रिय जीवों के हैं । बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय, असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय और संज्ञो पञ्चेन्द्रिय, इनके पर्याप्त और अपर्याप्त, ये दो-दो भेद होते हैं । इस प्रकार जीवों के चौदह भेद होते हैं।
योगों का अल्प-बहुत्व
>३ प्रश्न-एएसि णं भंते ! चोदसविहाणं संसारसमावण्णगाणं जीवाणं जहण्णुपकोसगस्स जोगस्स कयरे कयरे० जाव विसे. साहिया वा?
३ उत्तर-गोयमा ! १ सव्वत्थोवे सुहुमस्स अपजत्तगस्स जहण्णए जोए २ बायरस्स अपजत्तगस्स जहण्णए जोए असंखेजगुणे ३ बेइंदि. यस्स अपजत्तगस्स जहण्णए जोए असंखेजगुणे ४ एवं तेइंदियस्स
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org