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भगवती मूत्र-श. २६ उ. ११ अचरम बन्धक
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लेस्साए तहओ भंगो. मेमेसु पएसु सव्वाथ पढम-तइया भंगा, तेउका. इय-वाउकाइयाणं सव्वत्थ पढम-तइया भंगा, बेइंदिय-तेईदिय चउरिंदियाणं एवं चेव णवरं सम्मत्ते ओहिणाणे आभिणिवोहियणाणे सुयणाणे एएसु चउसु वि ठाणेसु तइओ भंगो। पंचिंदियतिरिवख. जोणियाणं सम्मामिच्छत्ते तहओ भंगो, सेसेसु पएसु सव्वस्थ पढमतइया भंगा। मणुस्साणं सम्मामिच्छत्ते अवेयए अकसाइग्मि य तहओ भंगो, अलेस्स-केवलणाण-अजोगी य ण पुच्छिज्जति, सेसपएसु सम्वत्थ पढम-तइया भंगा, वाणमंतर-जोइसिय वेमाणिया जहा णेरइया। णामं गोयं अंतराइयं च जहेव णाणावरणिज्ज तहेव गिरवसेसं. । ____® 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति जाव विहरइ * ॥ ध्वीसइमे बंधिसए एक्कारसमो उद्देसो समत्तो ॥
॥ वीसइमं सयं समत्तं ॥ भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! अचरम नै रयिक ने आय-कर्म बांधा था.?
६ उत्तर-हे गौतम ! पहला और तीसरा भंग सभी पदों में कहना चाहिये । नरयिकों (बहुवचन) के सभी पदों में पहला और तीसरा भंग कहना चाहिये । किन्तु सम्यगमिथ्यात्व में तीसरा भंग ही कहना चाहिये । इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक । पृथ्वीकायिक, अपकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के तेजोलेश्या में तीसरा भंग कहना चाहिये । शेष सभी पदों में सर्वत्र पहला और तीसरा भंग कहना चाहिये । तेउकाधिक और वायुकायिक के सभी स्थानों में प्रथम और तृतीय भंग कहना चाहिये । बेइनिय, तेइन्द्रिय और
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