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भगवती - २६ उ. ८ अनन्तर पर्याप्तक बन्धक
उद्देशक भी कहना चाहिये ।
३५.८१
विवेचन आहारकल्प के द्वितीयादि सगयवर्ती को परम्पराहारक कहते हैं ।
॥ छब्बीसवें शतक का सातवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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शतक २६ उद्देशक
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अनन्तर पर्याप्तक बन्धक
१ प्रश्न - अनंतरपजत्तए णं भंते! णेरइए पावं कम्मं किं बंधी
पुच्छा |
१ उत्तर - गोयमा ! जहेव अनंतरोववण्णएहिं उद्देसो तहेव णिरवसेसं ।
'सेवं भंते! सेवं भंते !' ति
॥ छवीसहमे सए अट्टम उद्देसो समत्तो ॥
भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! अनन्तर पर्याप्तक नैरविक ने पाप-कर्म बांधा था० ?
१ उत्तर - हे गौतम! अनन्तरोपपन्नक उद्देशक के समान सम्पूर्ण उद्देशक कहना चाहिये ।
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