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________________ ३५५८ भगवती मूत्र-श. २६ उ १ नैयिक के पाप-बन्ध सम्मामिच्छादिट्ठी, गाणी, आभिणिबोहियणाणी, सुयणाणी, ओहिणाणी, अण्णाणी, मइअण्णाणी, सुयअण्णाणी, विभंगणाणी, आहार सगोवउत्ते जाव परिग्गहसण्णोवउत्ते, सवेयए, णपुंसगवेयए, सकमायी 'जाव लोभकसायी, सजोगी, मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी, सागारोवउत्ते, अणागारोवउत्ते-एएसु सव्वेसु पएसु पढम बिइया भंगा भाणियत्रा । एवं असुरकुमारस्स वि वत्तव्वया भाणियव्वा, णवरं तेउलेस्सा, इत्थिवेयग-पुरिसवेयगा य अमहिया, गपुंसगवेयगा ण भणति, सेसं तं चेव, सव्वत्थ पढमबिइया भंगा । एवं जाव थणियकुमारस्स । एवं पुढविकाइयस्स वि, आउकाइयस्स विजाव पंचिंदियतिरिक्ख जोणियस्स वि सव्वत्थ वि पढम-विइया भंगा, णवरं जम्स जा लेस्सा । दिट्ठी, णाणं, अण्णाणं, वेदो, जोगो य अस्थि तं तस्स भाणियब्वं, सेसं तहेव । मणूसस्स जच्चेव जीवपए वत्तव्वया सच्चेव गिरवसेसा भाणियब्वा । वाणमंतरस्स जहा असुरकुमारस्स । जोइसियस्स वेमाणियस्स एवं चेव, णवरं लेस्साओ जाणियबाओ, सेसं तहेव भाणियव्वं । र भावार्थ-१५ प्रश्न-हे भगवन् ! सलेशी नैरयिक जीव ने पापकर्म बांधा था? १५ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् पहला और दूसरा भंग । इसी प्रकार कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी, कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक, सम्यगदष्टि, मिथ्यावृष्टि, सम्यमिथ्यादृष्टि, ज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधि. ज्ञानी, अज्ञानी, मतिअजानी, श्रुतअज्ञानी, विभंगज्ञानी, आहारसंज्ञोपयुक्त यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त, सवेदक, नपुंसक वेदक, सकषायी यावत् लोभकषाया, सयोगी, मनयोगी, वचनयोगी, काययोगी, साकारोपयुक्त, अनाकारोपयुक्त, इन सभी पदों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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