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________________ भगवती सूत्र - श. २६ उ. १ जीव ने कर्म का बन्ध किया, करता है, करेगा ? पाक्षिक' कहलाते हैं । कृष्णपाक्षिक जीवों में पहले के दो भंग होते हैं. क्योंकि वर्तमान काल में उन जीवों में पापकर्म का अबन्धकपन नहीं है। शुक्लपाक्षिक जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं। प्रथम भंग तो प्रश्न समय के अनन्तर तुरन्त के भविष्यत् समय की अपेक्षा घटित होता है । दूसरा भंग भविष्यत्काल में क्षपक अवस्था की प्राप्ति की अपेक्षा घटित होता है। तीसरा भंग उन शुक्लपाक्षिक जीवों में घटित होता है, जो मोहनीय कर्म का उपशम कर के पोछे गिरने वाले हैं और चौथा भंग क्षपक अवस्था की अपेक्षा घटित होता 1 ३५५६ 'कृष्णपाक्षिक जीवों में 'बांधगे नहीं' - यह अंश असम्भव होते हुए भी दुसरा भंग माना है, तो शुक्लपाक्षिक जीवों में वांधेगे नहीं' इस अंग का अवश्य सम्भव होने से 'बांधेंगे' - इस अंश युक्त प्रथम भंग क्यों नहीं घटित होता है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि शुक्लपाक्षिक जीवों के प्रश्न समय के अनन्तर ( तुरन्त पश्चात् ) समय की अपेक्षा प्रथम भंग है और कृष्णपाक्षिक जीवों में शेष समयों की अपेक्षा दूसरा भंग घटित होता है । सम्यग्दृष्टि जीवों में शुतलपाक्षिक के समान चारों भंग होते हैं। मिथ्यादृष्टि और मिश्र दृष्टि में पहले के दो भंग होते हैं, क्योंकि उनके मोहनीय कर्म का बन्ध होने में अन्तिम दो भंग घटित नहीं होते । केवलज्ञानी जीव को वर्तमान में और भविष्यत्काल में बन्ध नहीं होने से उनमें एकमात्र चौथा भंग ही होता है। अज्ञानी जीवों के मोहनीय कर्म का क्षय या उपशम न होने से पहले के दो भंग हो पाये जाते हैं । आहारादि की संज्ञा अर्थात् आसक्ति वाले जीवों में क्षपकपन और उपशमकपन नहीं होने से पहले के दो भंग ही होते हैं। नोसंज्ञा अर्थात् आहारादि की आसक्ति रहित जीवों में मोहनीय कर्म का क्षय और उपशम सम्भव होने से चारों भंग पाये जाते है । वेद का उदय हो, तत्र जीव मोहनीय का क्षय और उपगम नहीं कर सकता । इसलिये पहले के दो भंग ही पाये जाते हैं । अवेदी जीवों में वेद का उपगम हो, किन्तु सूक्ष्म संपराय गुणस्थान की प्राप्ति न हो, तब तक मोहनीय कर्म को बांधता है और बांध । अथवा वहां से गिर कर भी बांधेगा । वेद का क्षय हो जाने पर पापकर्म बाधता है, परन्तु सूक्ष्म संयादि अवस्था में नहीं बांधता है । उपशान्तवेदी जीव सूक्ष्म- संपरायादि अवस्था में पापकर्म नहीं बांधता है, किन्तु वहां से उतरने के बाद बांधता है। वेद का क्षय हो जाने पर सूक्ष्म-परायादि गुणस्थानों में पापकर्म नहीं बांधता है और आगे भी नहीं बांधेगा। सकषायी जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं । उनमें से महामंग अभव्य जीव की अपेक्षा है | दूसरा भंग उस भव्य जीव की अपेक्षा है, जिसका सोनीय कर्म क्षय होने वाला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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