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भगवती सूत्र-श. २६ उ. १ जीव ने कर्म का बन्ध किया, करता है, करेगा ? ३५५५
पाप कर्म बांधा था' इसके चार भंग बनाये हैं । यथा
१ बांधा था, बांधना है और बाँधेगा। .
बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा। ३ बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा । ४ बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा
यदि कोई यह शंका करे कि 'जिस प्रकार 'बांधा था' के चार भंग बनते हैं, उसी प्रकार नहीं बांधा था' के भी चार भंग क्यों नहीं बनते ?' इसका समाधान यह है कि 'भूतकाल में पाप कर्म नहीं बांधा था,-ऐसा कोई भी जीव नहीं है। इसलिए नहीं बांधा था' यह मूल भंग बन ही नहीं सकता, फिर चार भंग तो बने ही कहां से ? .
(1) 'बांधा था, बांधता है और बांधेगा'-यह पहला भंग अभव्य जीव की अपेक्षा है।
. (२) 'बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा'-यह दूसरा भंग क्षपक अवस्था को . प्राप्त होने वाले भव्य जीव की अपेक्षा है ।
(३) बांधा था, नहीं बांधता है ओर बांधेगा'-यह तीसरा भंग जिस जीव ने मोहनीय कम का उपशम किया है, उम उपशम दशा में वर्तमान भव्य जीव की अपेक्षा है। क्योंकि उस उपशम अवस्था से गिरने पर वह अवश्य कर्मों का बन्ध करेगा।
(४) 'बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा'-यह चौथा भंग क्षीण-मोदनीय जीव की अपेक्षा है। ...... . सलेशी जीव में चारों भंग पाये जाते हैं, क्योंकि शुक्ललेशी जीव पाप कर्म का
बन्धक भी होता है। कृष्णादि पांच लेश्या वाले जीवों में पहले के दो भंग हो पाये जाते हैं। क्योंकि उन जीवों में वर्तमान काल में मोहनीय कर्म का क्षय अथवा उपशम नहीं है । इसलिए उनमें तीसरा और चौथा भंग नहीं पाया जाता। कृष्णादि पांच लेश्या वाले जीवों में दूसरा भंग (बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा) तो सम्भव है, क्योंकि कालान्तर में क्षपक अवस्था प्राप्त होने पर वह नहीं बांधेगा ।
.अलेशी में केवल चौथा भंग ही पाया जाता है, क्योंकि अयोगी केवली अवस्था में जीव अलेशी होता हैं । लेश्या के अभाव में जीव अबन्धक होता है। .
जिन जीवों का संसार-परिभ्रमण काल अर्द्ध पुद्गल-परावर्तन काल से अधिक है, वे 'कृष्ण पाक्षिक' कहलाते हैं और जिन जीवों का संसार-परिभ्रमण काल अर्द्ध पुद्गल-परावर्तन से अधिक नहीं है और वे अर्द्ध पुद्गल-परावर्तन काल के भीतर ही मोक्ष चले जायेंगे, वे 'शक्ल
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