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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ८ आत्म-ऋद्धिमे उत्पत्ति
... ७ उत्तर-हे गौतम ! आत्म-प्रयोग से उत्पन्न होते हैं, पर-प्रयोग से नहीं।
८ प्रश्न-असुरकुमारा णं भंते ! कहं उववजंति ?
८ उत्तर-जहा गेरइया तहेव णिरवसेसं जाव णो परप्पओगेणं उववति । एवं एगिदियवजा जाव वेमाणिया । एगिंदिया एवं चेव । णवरं चउसमइओ विग्गहो, सेसं त चेव ।
® सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति जाव विहरह ...
॥ पणवीसइमे सए अट्ठमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमार किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ?
८ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिकों के समान असुरकुमार भी उत्पन्न होते हैं, यावत् आत्म-प्रयोग से उत्पन्न होते हैं, पर-प्रयोग से नहीं । इसी प्रकार एकेन्द्रिय के अतिरिक्त यावत् वैमानिक तक सभी जीवों के विषय में जानना चाहिये। एकेन्द्रियों का कथन भी उसी प्रकार है, किन्तु उनकी विग्रह गति उत्कृष्ट चार समय तक को होती है । शेष पूर्ववत् ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। .
विवेचन-जीवों की उत्पत्ति, शीघ्र गति एवं शीघ्र गति के विषय में चौदहवें शतक के प्रथम उद्देशक में विस्तारपूर्वक विवेचन किया है । तदनुसार यहाँ भी जानना चाहिये।
॥ पच्चीसवें शतक का आठवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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