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________________ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ७ व्युत्सर्ग १५३ प्रश्न-से किं तं संसारविउसग्गे ? १५३ उत्तर-संसारविउसग्गे चउठिवहे पण्णत्ते, तं जहा-णेरइयसंसारविउसग्गे जाव देवसंसारविउसग्गे । सेत्तं संसारविउसग्गे । भावार्थ--१५३ प्रश्न-हे भगवन् ! संसार व्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? १५३ उत्तर-हे गौतम ! संसार व्युत्सर्ग चार प्रकार का है। यथानैरयिक-संसार व्युत्सर्ग यावत् देव-संसार व्युत्सर्ग । यह संसार-व्युत्सर्ग हुआ। . १५४ प्रश्न-से किं तं कम्मक्सिग्गे ? १५४ उत्तर-कम्मविउसग्गे अट्टविहे पण्णत्ते, तं जहा-णाणावरणिजकम्मविउसग्गे जाव अंतराइयकम्मविउसग्गे । सेत्तं कम्मविउसग्गे । सेत्तं भावविउसग्गे । सेत्तं अभिंतरए तवे । • 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति* ॥ पणवीसइमे सए सत्तमो उद्देसओ समत्तो॥ भावार्थ-१५४ प्रश्न-हे भगवन् ! कर्म व्युत्सर्ग के कितने भेद हैं ? ... १५४ उत्तर-हे गौतम ! कर्म व्युत्सर्ग के आठ भेद हैं। यथा-ज्ञानावरणीय कर्म व्युत्सर्ग यावत् अन्तराय कर्म व्युत्सर्ग । यह कर्म व्युत्सर्ग हुआ और यह भाव व्युत्सर्ग हुआ और साथ ही यह आभ्यंतर तप हुआ। . 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-ममत्व का त्याग करना 'व्युत्सर्ग' तप है । इसके सामान्यतः दो भेद हैं ।। यथा---द्रव्य व्युत्सर्ग और भाव व्युत्सर्ग । द्रव्य व्युत्सर्ग के चार भेद हैं । यथा-- (१) शरीर व्युत्सर्ग--ममत्व रहित हो कर शरीर का त्याग करना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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