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भगवती सूत्र - श. २५ उ. ७ आर्त ध्यान
२ रोहे झाणे ३ धम्मे झाणे ४ सुक्के झाणे ।
भावार्थ - १४४ प्रश्न - हे भगवन् ! ध्यान कितने प्रकार का है ? १४४ उत्तर - हे गौतम! ध्यान चार प्रकार का है । यथा-आतंध्यान २ रौद्र ध्यान ३ धर्म ध्यान और ४ शुक्ल ध्यान ।
विवेचन - एक लक्ष्य पर चित्त को एकाग्र करना - 'ध्यान' है, अथवा छद्मस्थों का अन्तर्मुहुर्त परिमाण, एक वस्तु पर चित्त स्थिर रखना 'ध्यान' कहलाता है। एक वस्तु से दूसरी वस्तु में ध्यान के संक्रमण होने पर ध्यान का प्रवाह चिर काल तक भी रह सकता है । जिनेन्द्र भगवान् के लिये तो योगों का निरोध करना ही ध्यान कहलाता 1
आर्त ध्यान
१४५ - अट्टे झाणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - १ अमणुष्णसंपओगसंपत्ते तस्स विप्पओगसइसमण्णा गए यावि भवइ २ मणुष्णसंपओगसंपत्ते तस्स अविप्पओगसइसमण्णागए यावि भवइ ३ आयंकसंपओगसंपत्ते तस्स विप्पओगसइसमण्णागए यावि भवड़ ४ परिज्जुसियकामभोगसंपओगसंपत्ते तस्स अविप्पओगसइसमण्णागर यावि भवइ ।
अस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, १ कंदणया २ सोयणया ३ तिप्पणया ४ परिदेवणया ।
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पर उसके वियोग की चिन्ता करना ।
भावार्थ - १४५ आर्त ध्यान चार प्रकार का है । यथा
१ अमनोज्ञ वियोग चिन्ता - अमनोज ( अनिष्ट) वस्तु की प्राप्ति होने
तं जहा·
२ मनोज्ञ अवियोग चिन्ता - मनोज्ञ (इष्ट) वस्तु की प्राप्ति होने पर
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