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भगवती सूत्र-प्रा. २५ उ. ७ स्वाध्याय तप, ध्यान के भेद
३५२५.
देना 'वैयावृत्य' कहलाता है ।
स्वाध्याय तप.
१४३ प्रश्न-से किं तं सज्झाए ?
१४३ उत्तर-सज्झाए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-१ वायणा २ पडिपुच्छणा ३ परियट्टणा ४ अणुप्पेहा ५ धम्मकहा। सेत्तं सज्झाए।
भावार्थ-१४३ प्रश्न-हे भगवन् ! स्वाध्याय कितने प्रकार का है ?
१४३ उत्तर-हे गौतम ! स्वाध्याय पांच प्रकार का है। यथा-१ वाचना . २ पृच्छना ३ परिवर्तना ४ अनुप्रेक्षा और ५ धर्मकथा । यह स्वाध्याय हुआ।
विवेचन-अस्वाध्याय काल टाल कर, मर्यादापूर्वक शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन आदि करना 'स्वाध्याय' है । स्वाध्याय के पांच भेद हैं । यथा-१ वाचना-शिष्य को मूत्र और अर्थ पढ़ाना २ पृच्छना-वाचना ग्रहण कर के उसमें सन्देह होने पर पुनः पूछना 'पृच्छना' है अथवा पहले सीखे हुए सूत्रादि ज्ञान में शंका होने पर प्रश्न करना 'पृच्छना' है। ३. परिवर्तना-पढ़ा हुआ ज्ञान विस्मृतः न हो जाय, इसलिये बार-बार आवृत्ति करना'परिवर्तना' है । ४ अनुप्रेक्षा-सीखे हुए सूत्र के अर्थ का विस्मरण न हो जाय, इसलिये उसका बार-बार मनन करना, विचारना 'अनुप्रेक्षा' है । ५ धर्मकथा-उपर्युक्त चारों प्रकार से शास्त्र का अभ्यास करने पर श्रोताओं को शास्त्रों का व्याख्यान सुनाना, धर्मोपदेश देना, 'धर्मकथा' कहलाती है ।
ध्यान के भेद १४४ प्रश्न-से किं तं झाणे? १४४ उत्तर-झाणे चउन्विहे पण्णते, तं जहा-१ अट्टे झाणे
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