________________
भगवती सूत्र-श. २५ उ. ७ वैयावृत्य तप
दूसरे साधर्मिकों को सुख पहुँचे-- इस प्रकार की बाह्य क्रियाएँ करना लोकोपचारविनय' है । इसके सात भेद हैं। जिनके नाम और अर्थ भावार्थ में लिखे जा चुके हैं । इस प्रकार विनय के कुल मिला कर १३४ भेद होते हैं।
अन्यत्र विनय के ५२ भेद भी कहे हैं । वे इस प्रकार हैं--तीर्थकर, सिद्ध, कुल, गण, संघ, क्रिया, धर्म, ज्ञान, ज्ञानी, आचार्य, उपाध्याय, स्थविर और गणी, इन तेरह की (१) आशातना न करना (२) भक्ति करना (३) बहुमान करना अर्थात् इनके प्रति पूज्य भाव रखना (४) इनके गुणों की प्रशंसा करना। इस तरह चार प्रकार से इन तेरह का विनय किया जाता है । तेरह को चार से गुणा करने से विनय के बावन भेद होते हैं ।
वैयावृत्य तप
१४२ प्रश्न-से किं तं वेयावच्चे ? -- १४२ उत्तर-वेयावच्चे दसविहे पण्णत्ते, तं जहा-१ आयरियवेयावच्चे २ उवज्झायवेयावच्चे ३ थेरवेयावच्चे ४ तवस्सिवेयावच्चे ५ गिलाणवेयावच्चे ६ सेहवेयावच्चे ७ कुलवेयावच्चे ८ गणवेयावच्चे ९ संघवेयावेच्चे १० साहम्मियवेयावच्चे । सेत्तं वेयावच्चे ।
भावार्थ-१४२ प्रश्न-हे भगवन् ! वैयावस्य के कितने भेव हैं ?
१४२ उत्तर-हे गौतम ! वेयावृत्य के दस भेद हैं। यथा-१ आचार्य की वैयावत्य २.उपाध्याय की वैयावृत्य ३ स्थविर की वैयावत्य ४ तपस्वी की वयावत्य ५ रोगी की वैयावृत्य ६ ऑक्ष (नव दीक्षित) की वैयावृत्य ७ कुल (एक आचार्य का शिष्य परिवार) को वैयावत्य ८ गण (समूह) की वैयावत्य ९ संघ की यावृत्य और १० सामिक (समान धर्म वाले) की वैयावत्य । यह ययावत्य हुआ।
विवेचन-गुरु, तपस्वी, रोगी, नवदीक्षित आदि को विधिपूर्वक आहारादि ला कर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org