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________________ भगवती सूत्र-ग. २५ उ ७ विना नप. १३५ प्रश्न-से किं तं वइविणए ? १३५ उत्तर-वइविणए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पसत्थवइविणए य अप्पसत्थवइविणए य । भावार्थ-१३५ प्रश्न-हे भगवन ! वचन-विनय कितने प्रकार का है ? १३५ उत्तर-हे गौतम ! वचन-विनय दो प्रकार का है । यथा-प्रशस्त .. वचन-विनय और अप्रशस्त वचन-विनय । १३६ प्रश्न-से किं तं पसत्थवइविणए ? १३६ उत्तर-पसत्थवइविणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा-१ अपा. वए २ असावज्जे जाव ७ अभूयाभिसंकणे । सेत्तं पसत्थवइविणए । भावार्थ-१३६ हे भगवन ! प्रशस्त वचन-विनय कितने प्रकार का है ? १३६ उत्तर-हे गौतम ! प्रशस्त वचन-तिनय सात प्रकार का है। यथाअपापकारी, असावधकारी यावत् अभूताभिशंकित। यह प्रशस्त वचन-विनय हुआ। १३७ प्रश्न-से किं तं अप्पसत्थवइविणए ? ... १३७ उत्तर-अप्पसत्थवइविणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा१ पावर २ सावज्जे जाव ७ भूयाभिसंकणे । सेत्तं अप्पसत्थवइविणए । सेत्तं क्इविणए। भावार्थ-१३७ प्रश्न-हे भगवन् ! अप्रशस्त वचन-विनय कितने प्रकार का है ? १३७ उत्तर-हे गौतम ! अप्रशस्त वचन-विनय सात प्रकार का कहा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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