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________________ भगवती मूत्र-ग. २५ उ. ७ प्रतिमलीनता ता ३५११ १२१ प्रश्न-से किं तं जोगपडिसंलीणया ? १२१ उत्तर-जोगडिसंलीणया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-मणजोगप० वइ जोगप० कायजोगपडिसंलीणया। से किंतं मणजोगप० ? मणजोगपडिसंलीणया तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-१ अकुसलमणणिरोहो वा २ कुसलमणउदीरणं वा ३ मणस्स वा एगत्तीभावकरणं । से किं तं वइजोगप० ? वइ जोगप० तिविहा पण्णत्ता, तंजहा - १ अकुसलवइणिरोहो वा २ कुसलवइउदीरणं वा ३ वइए वा एगत्तीभावकरणं। ___ भावार्थ-१२१ प्रश्न-हे भगवन् ! योग-प्रतिसंलीनता कितने प्रकार को है ? : १२१ उत्तर-हे गौतम ! योग-प्रतिसंलीनता तीन प्रकार की है। यथामनयोग प्रतिसंलीनता, व वनयोग प्रतिसंलोनता और काययोग प्रतिसलीनता। हे भगवन् ! मनयोग प्रतिसंलोनता कितने प्रकार की है ? हे गौतम ! तीन प्रकार की कही गई है, यथा-१ अकुशल मन का निरोध २ कुशल मन की उदीरणा और ३ मन को एकाग्र करना । हे भगवन् ! वचनयोग प्रतिसंलीनता कितने प्रकार की कही गई है ? हे गौतम! तीन प्रकार की कही गई है । यथा१ अकुशल वचन का निरोध २ कुशल वचन की उदीरणा और ३ वचन की एकाग्रता करना। १२२ प्रश्न-से किं तं कायपडिसंलीणया ? १२२ उत्तर-कायपडिसंलीणया जणं सुसमाहियपसंतसाहरियपाणिपाए कुम्मो इव गुत्तिदिए अल्लीणे पल्लीणे चिट्टइ, सेत्तं कायपडिसंलीणया । सेत्तं जोगपडिसंलीणया । भावार्थ-१२२ प्रश्न-हे भगवन् ! काय-प्रतिसंलीनता किसे कहते हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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