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________________ भगवती सूत्र - २५.७ प्रतिसंलीनता तप ११९ उत्तर - इंदिय० पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा- सोइंदिय विसयप्पयारणिरोहो वा सोइंदियविमयप्पत्तेसु वा अत्थेसु रामदोसविणिग्गहो, चक्खिदियविसय० एवं जाव फासिंदिय विसयप्पयारणिरोहो वा फासिंदियविसयप्पत्तेसु वा अत्थेसु रागदोसविणिग्गहो । सेत्तं इंदियपडिलीणया | भावार्थ - ११९ प्रश्न - हे भगवन् ! इंद्रिय प्रतिसंलीनता कितने प्रकार ३५१० की है ? ११९ उत्तर - हे गौतम! इंद्रिय प्रतिसंलीनता पाँच प्रकार की है । यथाश्रोत्रेन्द्रिय विषय प्रचार निरोध अथवा श्रोत्रेन्द्रिय विषय प्राप्त अर्थों में रागद्वेष विनिग्रह, चक्षुरिन्द्रिय विषय-प्रचार निरोध अथवा चक्षुरिन्द्रिय विषय प्राप्त अर्थों में राग-द्वेष विनिग्रह, इस प्रकार यावत् स्पर्शनेन्द्रिय विषय-प्रचार निरोध अथवा स्पर्शनेन्द्रिय विषय प्राप्त अर्थों में राग-द्वेष विनिग्रह। यह इंद्रिय प्रतिसंलीनता तप हुआ । १२० प्रश्न - से किं तं कसायपडिसंलीणया ? १२० उत्तर - कसायपडिलीणया चउव्विहा पण्णत्ता । तं जहाकोहोदयणिरोहो वा उदयपत्तस्स वा कोहस्स विफलीकरणं, एवं जाव लोभोदयणिरोहो वा उदयप्पत्तस्स वा लोभस्स विफलीकरणं । सेत्तं कसायपडिलीणया | भावार्थ - १२० प्रश्न - हे भगवन् ! कषाय- प्रतिसंलीनता कितने प्रकार की है ? १२० उत्तर - हे गौतम! कषाय- प्रतिसंलीनता चार प्रकार की है । यथा - क्रोधोदय निरोध अथवा उदय प्राप्त क्रोध का विफलीकरण, इस प्रकार यावत् लोभोदय निरोध या उदय प्राप्त लोभ का विफलीकरण । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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