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________________ भगवती सूत्र-ठा. २५ उ. ७ भिक्षाचरी तप ३५०७ प्रमाण आहार करना ‘अल्पाहार उनोदरी' है। बारह कवल प्रमाण आहार करना 'अवठ्ठ (अपार्द्ध) ऊनोदरी' है अर्थात् हाई भाग की ऊनोदरी है । सोलह कवल प्रपाण आहार करना 'अर्द्ध ऊनोदरी' है । चौबीस कवल प्रमाण आहार करना प्राप्त (पाव) ऊनोदरी' है अर्थात् चार विभाग में से तीन विभाग आहार है और एक विभाग ऊनोदरी है । इकत्तीस कवल प्रमाण आहार करना 'किंचित् ऊनोदरी' है और पूरे बत्तीस कवल प्रमाण आहार करना 'प्रमाणोपेत आहार' कहलाता है । पूर्ण आहार तप नहीं माना जाता । एक कवल प्रमाण भी आहार कम करे, वहाँ तक थोड़ा भी तप अवश्य है और इस प्रकार ऊनोदरी तप करने वाला मुनि 'प्रकाम-रस-भोजी' नहीं कहलाता । इस ऊनोदरी तप का विशेष विवेचन सातवें शतक के प्रथम उद्देशक में किया जा चुका है। भाव ऊनोदरी के अनेक भेद कहे हैं। क्रोध, मान, माया और लोभ में कमी करना, इनके आवेश को कम करना । अल्प शब्द बोलना, कषाय के वश हो कर भाषण न करना तथा हृदय में रहे हुए कषाय को शान्त करना 'भाव ऊनोदरी' है। . ..... . भिक्षाचरी तप ११५ प्रश्न-से किं तं भिक्खायरिया ? .... ११५ उत्तर-भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहादव्वाभिग्गहचरए-जहा उववाइए, जाव सुद्धेसणिए, संखादत्तिए । सेत्तं भिक्खायरिया । ... भावार्थ-११५ प्रश्न-हे भगवन् ! भिक्षाचर्या कितने प्रकार की है ? ११५ उत्तर-हे गौतम ! भिक्षाचर्या अनेक प्रकार को कही है । यथाद्रव्याभिग्रहचरक भिक्षाचर्या इत्यादि औपपातिक सूत्र के अनुसार, यावत् शुद्वैषणिक, संख्यादत्तिक । यह भिक्षाचर्या है । विवेचन-विविध प्रकार के अभिग्रह ले कर भिक्षा का संकोच करते हुए विचरना, 'भिक्षाचर्या' तप कहलाता है । अभिग्रहपूर्वक भिक्षा करने से वृत्ति का संकोच होता है, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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