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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ७ ऊनोदरी तप
११४ प्रश्न-से किं तं भावोमोयरिया ?
११४ उत्तर-भावोमोयरिया अणेगविहा पण्णता, तं जहा-अप्पकोहे जाव अप्पलोभे, अप्पसद्दे, अप्पझंझे, अप्पतुमंतुमे । सेतं भावो. मोयरिया । सेतं ओमोयरिया ।
___ भावार्थ-११४ प्रश्न-हे भगवन् ! भाव अवमोदरिका कितने प्रकार की कही है ?
११४ उत्तर-हे गौतम ! भाव अवमोदरिका अनेक प्रकार की कही है। यथा-अल्प क्रोध, यावत् अल्प लोम, अल्प शब्द, अल्प झंझ, अल्प तुमन्तुम । यह भाव अवमोदरिका हुई । यह अवमोदरिका पूर्ण हुई।
विवेचन-अवमोदरिका (ऊनोदरी)--भोजन आदि का परिमाण और क्रोधादि का आवेश कम करना-'ऊनोदरी' तप कहलाता है। इसके दो भेद हैं। यथा-द्रव्य ऊनोदरी और भाव ऊनोदरी । भण्ड-उपकरण और आहारादि का शास्त्रों में जो परिमाण बताया है, उसमें कमी करना तथा अति सरस और पौष्टिक आहार का त्याग करना--द्रव्य ऊनोदरी है। द्रव्य ऊनोदरी के दो भेद हैं । यथा--उपकरण द्रव्य ऊनोदरी और भक्तपान द्रव्य ऊनोदरी । उपकरण द्रव्य ऊनोदरी के तीन भेद हैं। यथा---एक पात्र, एक वस्त्र और जीर्ण उपधि । शास्त्र में चार पात्र रखने का विधान है । उसमे कम रखना पात्र ऊनोदरी है । इसी प्रकार साधु के लिये वस्त्र बहत्तर हाथ (चोरस) और साध्वी के लिये छियानवें हाथ रखने का विधान है, इससे कम रखना 'वस्त्र ऊनोदरी' है । तीसरे भेद के लिये 'चियत्तो.. वगरणसाइज्जणया' यह मूलपाठ है । जिसका अर्थ टीकाकार ने किया है कि संयतों के त्यागे हए उपकरणों को लेना तथा 'जीर्ण' वस्त्रपात्रादि लेना किया है । चर्णिकार ने इस विषय में लिखा है
जंवत्थाई धारेइ तम्मि वि ममत्तं नस्थि । जब कोई मग्गइ तस्स देह ।।।
अर्थात्--मुनि के पास जो वस्त्र हों, उनमें ममत्व भाव न रखे और दूसरा कोई संभोगी साधु माँगे, तो उसे दे दे।
ये सभी अर्थ ऊनोदरी में घटित होते हैं। भक्तपान द्रव्य ऊनोदरी के सामान्यतः पांच भेद हैं । यथा- आठ कवल (ग्रास)
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