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भगवती मूत्र-श, २५ उ ७ अनशन तप
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विवेचन-शरीर, आत्मा और कर्मों का तप ना 'तप' है । जैसे - अग्नि में तपा हुआ सोना, निर्मल हो कर शुद्ध होता है, उसी प्रकार तप रूपी अग्नि से तपो हुई आत्मा कर्ममल से रहित हो कर शुद्ध स्वरूप हो जाता है । तप दो प्रकार का है-बाह्य और आभ्यन्तर । शरीर से विशेष सम्बन्ध रखने वाला तप 'बाह्य तप' कहलाता है । इसके छह भेद हैं ।
अनशन तप
१०५ प्रश्न-से किं तं अणसणे ? |
१०५ उत्तर-अणसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-इत्तरिए य आवकहिए य।
भावार्थ-१०५ प्रश्न-हे भगवन् ! अनशन कितने प्रकार का कहा है ?
१०५ उत्तर-हे गौतम ! अनशन दो प्रकार का कहा है । यथा-इत्वरिक और यावत्कथिक।
१०६ प्रश्न-से किं तं इत्तरिए ? -
१०६ उत्तर-इत्तरिए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा-चउत्थे भत्ते, छट्टे भत्ते, अट्टमे भत्ते, दसमे भत्ते, दुवालसमे भत्ते, चोइसमे भत्ते, अद्धमासिए भते, मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते जाव छम्मासिए भत्ते । सेतं इत्तरिए । . भावार्थ-१०६ प्रश्न-हे भगवन् ! इत्वरिक अनशन कितने प्रकार का कहा है ?
१०६ उत्तर-हे गौतम ! इत्वरिक अनशन अनेक प्रकार का कहा है। यथा-चतुर्थभक्त, (उपवास), षष्ठभक्त (बेला), अष्टमभक्त (तेला), वशमभक्त (चोला), द्वादशभक्त (पचोला), चतुर्दशभक्त (छह उपवास), अर्द्धमासिक
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