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________________ प्रतिसेवना ९७ प्रश्न-कइविहा णं भंते ! पडिसेवणा पण्णत्ता ? ९७ उत्तर-गोयमा ! दसविहा पडिसेवणा पण्णत्ता, तं जहा दप्पपमादऽणाभोगे आउरे आवतीति य । संकिण्णे सहसकारे भयप्पओसा य वीमंसा । कठिन शब्दार्थ-वीमंसा-विमर्श-विचार-परीक्षा । भावार्थ-९७ प्रश्न-हे भगवन ! प्रतिसेवना कितने प्रकार की कही है ? ९७ उत्तर-हे गौतम ! प्रतिसेवना दस प्रकार की कही है। यथा१ दर्प प्रतिसेवना, २ प्रमाद प्रतिसेवना, ३ अनाभोग प्रतिसेवना, ४ आतुर प्रतिसेवना, ५ आपत् प्रतिसेवना, ६ संकीर्ण प्रतिसेवना, ७ सहसाकार प्रतिसेवना. ८ भय प्रतिसेवना, ९ प्रद्वेष प्रतिसेवना.और १० विमर्श प्रतिसेवना। विवेचन-पाप या दोगों के सेवन से होने वाली मंयम की विराधना को 'प्रतिसेवना' कहते हैं । इसके दस भेद हैं--- १ दर्प प्रतिसेवना--अहकार (अभिमान) में होने वाली मंयम की विराधना । २ प्रमाद प्रतिसेवना--मद्यपान, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा, इन प्रमादों के सेवन से होने वाली संयम की विराधना । ३ अनाभोग प्रतिसेवना--अनजान से होने वाली संयम की विराधना । ४ आतुर प्रतिसेवना--भूख, प्यास, आदि किमी पीड़ा से व्याकुल होने पर की गई संयम की विराधना। ५ आपत् प्रतिसेवना--किसी आपत्ति के आने पर संयम की विराधना करना । आपत्ति चार प्रकार की होती है । यथा--द्रव्य आपत्ति--प्रासुक आदि निर्दोष आहारादि नहीं मिलना। क्षेत्र आपत्ति-~मार्ग भूल जाने आदि से अटवी आदि भयानक बन में भटक जाना। काल आपत्ति--भिक्ष आदि में। भाव आपत्ति--रोगातंक से शरीर का अस्वस्थ हो जाना। ६ संकीर्ण प्रतिसेवना--स्वपक्ष और परपक्ष से होने वाली स्थान की तंगी के कारण संयम का उल्लंघन करना अर्थात् छोटे क्षेत्रों में साधु-साध्वी और भिक्षाचरों का अधिक इकट्ठा हो जाने से संयम में दोष लगाना अथवा शंकित प्रतिसेवना--ग्रहण योग्य आहार में भी किसी दोष की शंका हो जाने पर उसको लेना । अथवा आहारादि के न मिलने पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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