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भगवती सूत्र श. २५ उ. ७ अल्प बहुत्व द्वार
विमुद्धिय सुहमसंपराय अहक्खायसंजयाणं कयरे कपरे जाव विसेसाहिया वा ?
९५ उत्तर - गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहृमसंपरायसंजया, परिहारविशुद्धियसंजया संखेज्जगुणा, अहक्खायसं जया संखेज्जगुणा, छेओवट्टावणियसंजया संखेजगुणा, मामाइयसंजया संखेज्जगुणा ( ३६ ) |
भावार्थ - ९५ प्रश्न - हे भगवन् ! सामायिक संयत, छेदोपस्थापनीय संयत, परिहारविशुद्धिक संयत, सूक्ष्म संपराय संयत और यथाख्यास संयतों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ?
९५ उत्तर - हे गौतम ! सूक्ष्म संपराय संपत सब से थोड़े हैं, उनसे परिहारविशुद्धिक संयत संख्यात गुण हैं, उनसे यथाख्यात संयत संख्यात गुण हैं, उनसे छेदोपस्थापनीय संयत संख्यात गुण हैं और उनसे सामायिक संयत संख्यात गुण है (३६) ।
विवेचन - अल्प- बहुत्व द्वार सब से अल्प सूक्ष्म - सम्पराय संयत कहे हैं, क्योंकि उनका काल अल्प है और वे निर्ग्रथ के तुल्य होने से एक समय में शतपृथक्त्व होते हैं, उनसे परिहारविशुद्धिक संयत संख्यात गुण होते हैं, क्योंकि उनका काल सूक्ष्म- सम्पराय संयतों से अधिक है और वे पुलाक के समान सहस्रपृथक्त्व होते हैं, उनसे यथाख्यात संयत संख्यात गुण होते हैं, उनका परिमाण कोटिपृथक्त्व होता है, उनसे छेदोपस्थापनीय संयत संख्यात गुण होते हैं, उनका परिमाण कोटिशतपृथक्त्व होता है, उनसे सामायिक संयत संख्यात गुण होते हैं, उनका परिमाण कषाय - कुशील के समान कोटिसहस्रपृथक्त्व होता है ।
९६ - डिसेवण दोसाssलोयणा य आलोयणारिहे चेव । तत्तो सामायारी पायच्छित्ते तवे चैव ।
९६ भावार्थ - १ प्रतिसेवना २ आलोचना के दोष ३ दोषों की आलोचना ४ आलोचना देने योग्य गुरु ५ समाचारी ६ प्रायश्चित्त और ७ तप, इन सात विषयों का वर्णन अब आगे किया जायगा ।
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