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________________ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ७ अल्प बहुत्व द्वार ९४ उत्तर - गोयमा ! पडिवज़माणए पडुच्च सिय अस्थि सिय णत्थि । जइ अस्थि जहण्णेणं एको वा दो वा तिष्णि वा, उक्कोसे बावस अत्तरस्यं खवगाणं, चउप्पर्ण उवसामगाणं । पुव्वपडिवण्णए पडुच्च जहण्णेणं कोडिपुहुत्त, उक्कोसेण वि को डिपुहुत्तं । भावार्थ - ९४ प्रश्न - हे भगवन् ! यथाख्यात संयत एक समय में कितने होते हैं ? ९४ उत्तर - हे गौतम! प्रतिपद्यमान कदाचित् होते हैं और नहीं भी होते । यदि होते हैं, तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट १६२ होते हैं । जिनमें १०८ क्षपक और ५४ उपशमक होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न जघन्य और उत्कृष्ट कोटिपृथक्त्व होते हैं ( ३४ ) । विवेचन - परिमाण द्वार में छेदोपस्थापनीय संयतों का जो उत्कृष्ट परिमाण बताया है, वह प्रथम तीर्थंकर के तीर्थ की अपेक्षा सम्भवित होता है, किन्तु जघन्य परिमाण बराबर समझ में नहीं आता, क्योंकि पाँचवें आरे के अन्त में भरतादि दस क्षेत्रों में प्रत्येक क्षेत्र में दो-दो संयत होने से जघन्य बीस छेदोपस्थापनीय संयत होते हैं। कोई आचार्य तो इस प्रकार कहते हैं कि जघन्य परिमाण भी प्रथम तीर्थंकर के तीर्थ की अपेक्षा समझना चाहिये- ऐसा टीकाकारों का अभिप्राय है । इसमें जो जघन्य परिमाण में कोटिशतपृथक्त्व बताया है, उसका परिमाण अल्प है और उत्कृष्ट में जो कोटिशतपृथक्त्व बताया है, उसका परिमाण अधिक समझना चाहिये । ३४९० प्रतिपद्यमान यथाख्यात संयत एक समय में उत्कृष्ट १६२ होते हैं । इनमें १०८ क्षपक होते हैं । क्षपक श्रेणी वाले सभी मोक्ष जाते हैं एक समय में १०८ से अधिक मोक्ष नहीं जा सकते । अतः एक समय में क्षपक यथाख्यात संयतों की उत्कृष्ट संख्या १०८ ही होती है । उसी समय उपशमक यथाख्यात संयतों की संख्या ५४ ही होती है, क्योंकि जीव का स्वभाव ही ऐसा है । इस प्रकार एक समय में यथाख्यात संयतों की उत्कृष्ट संख्या १६२ घटित होती है । अल्प- बहुत्व द्वार ९५ प्रश्न - एएसि णं भंते ! सामाइय छेओवट्टावणिय परिहार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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