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________________ ३४८८ भगवती सूत्र-ग. २५ उ. ४ भाद द्वार ८९ उत्तर-जहेच होजा तहेव फुसह (३३) । कठिन शब्दार्थ--फुसइ--स्पर्श करता है । .. भावार्थ-८९ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत लोक के संख्यातवें भाग को स्पर्श करते हैं. ? ८९ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार क्षेत्र अवगाहना कही है, उसी प्रकार क्षेत्र-स्पर्शना भी जाननी चाहिये (३३) । भाव द्वार ९० प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! कयरंमि भावे होजा ? ९० उत्तर-गोयमा ! खओवसमिए भावे होजा । एवं जाव सुहुमसंपराए। भावार्थ-९० प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत कौन-से भाव में होते हैं ? ९. उत्तर-हे गौतम ! क्षायोपशमिक भाव में होते हैं । इसी प्रकार यावत् सूक्ष्म-संयत पर्यन्त । ९१ प्रश्न-अहक्खायसंजए-पुच्छा। ९१ उत्तर-गोयमा ! उपसमिए वा खहए वा भावे होजा (३४)। भावार्थ-९१ प्रश्न-हे भगवन ! यथाख्यात संयत किस भाव में होते हैं ? ९१ उत्तर-हे गौतम ! औपशमिक या क्षायिक भाव में होते हैं (३४)। ‘विवेचन--क्षेत्र द्वार, स्पर्शना द्वार और भाव द्वार के लिये पुलाक आदि का अतिदेश किया है । जिनका वर्णन उ. ६ में किया जा चुका है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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