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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ७ लोक स्पर्ग द्वार
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८७ उत्तर-गोयमा ! छ समुग्घाया पण्णत्ता-जहा कसायकुसी. लस्म । एवं छे ओवट्ठावणियस वि। परिहारविमुद्धियस्स जहा पुलागस्स। 'सुहमसंपरायस्स जहा णियंठस्स । अहक्खायस्स जहा सिणायस्स (३१)।
भावार्थ-८७ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत के समुद्घात कितने कहे हैं ?
८७ उत्तर-हे गौतम ! कषाय-कुशील के समान छह समुद्घात कहे हैं। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत भी। परिहारविशुद्धिक संयत पुलाक के समान है । सूक्ष्म-संपराय संयत निग्रंथ के समान है और यथाख्यात संयत के समुद्घात स्नातक जैसे हैं (३१) ।
- लोक स्पर्श द्वार ८८ प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! लोगस्स किं संखेजहभागे होजा, असंखेजहभागे-पुच्छा। ... ८८ उत्तर-गोयमा ! णो सखेजइ-जहा पुलाए । एवं जाव सुहुमसंपराए । अहक्खायसंजए जहा सिणाए (३२) ।
भावार्थ-८८ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत, लोक के संख्यातवें भाग में होते हैं या असंख्यातवें भाग में ?
" ८८ उत्तर-हे गौतम ! लोक के संख्यातवें भाग में नहीं होते इत्यादि पुलाक के समान । इसी प्रकार यावत् सूक्ष्म-संपराय संयत तक । यथाख्यात संयत का कथन स्नातक के समान है (३२)। ..
.८९ प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! लोगस्स किं संखेजहभागं फुसइ० ?
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