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________________ भगवती मूत्र-श. २५ उ ७ स्थिति द्वार अपेक्षा से यह संख्या विशेष बताई गई है। इसके अतिरिक्त दूसरी रीति से भी जिस मे नौ सौ से अधिक संख्या आ जाय, घटित करना चाहिये । परिहारविशुद्धिक संयत के एक भव में उत्कृष्ट तीन बार परिहारविशुद्धि चारित्र की प्राप्ति होती है और यह चारित्र तीन भव तक प्राप्त हो सकता है। इसलिये एक भव में तीन बार दूसरे भव में दो बार और तीसरे भव में दो बार इत्यादि विकल्प से उसके अनेक भवों में सात आकर्ष होते हैं । सूक्ष्म संगराय संगत के एक भव में चार आकर्ष होते हैं और इसकी प्राप्ति तीन भत्र तक हो सकती है। इसलिये उसके एक भत्र में चार बार, दूसरे भव में चार बार और तीसरे भव में एक बार, इस प्रकार अनेक भवों में नो आकर्ष होते हैं । यथाख्यात संयत के एक भव में दो आकर्ष, दूसरे भव में दो आकर्ष और तीसरे भव में एक आकर्ष, इस प्रकार तीन भत्रों में पाँच आकर्ष होते हैं । स्थिति द्वार ७८ प्रश्न - सामाइयसंजए णं भंते ! कालओ केवचिरं होड ? ७८ उत्तर - गोयमा ! जहण्णेणं एवकं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहिं वहिं वासेहिं ऊणिया पुव्वकोडी । एवं छेओवावणिए वि । परिहारविमुद्धिए जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणएहिं गुणतीसार वासेहिं ऊणिया पुव्वकोडी | सुहुमसंपराए जहा णियंठे । अहम्खाए जहा सामाइयसंजए । ३४८१ भावार्थ- ७८ प्रश्न - हे भगवन् ! सामायिक संयत कितने काल तक होते अर्थात् उनकी स्थिति कितनी है ? ७८ उत्तर - हे गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन नौ वर्ष कम पूर्वकोटि वर्ष पर्यन्त । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत भी । परिहारविशुद्धिक संपत जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन उनतीस वर्ष कम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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