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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ७ आकर्ग द्वार
७६ उत्तर-गोयमा ! जहा बउसे। .
भावार्थ-७६ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत के अनेक भवों । कितने आकर्ष कहे हैं ?
७६ उत्तर-हे गौतम ! बकुश के अनुसार । ७७ प्रश्न-छे ओवट्टावणियस्स-पुन्छा।
७७ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं दोण्णि, उक्कोसेणं उवरि णवण्हं सयाणं अंतो सहस्सम्म । परिहारविसुवियस्स जहण्णेणं दोण्णि, उकोसेणं सत्त । सुहमसंपरायस्स जहणेणं दोगिण, उक्कोसेणं णव । अहक्खायस्स जहण्णेणं दोषिण, उक्कोसेणं पंच ।
कठिन शब्दार्थ--उरि-ऊपर । भावार्थ-७७ प्रश्न-हे भगवन् ! छेदोपस्थापनीय संयत के अनेक भवों में.?
७७ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य दो तथा उत्कष्ट नौ सौ से ऊपर और एक हजार से नीचे आकर्ष कहे हैं । परिहारविशुद्धिक संयत के जघन्य दो और उत्कृष्ट सात, सूक्ष्म-संपराय संयत के जघन्य दो और उत्कृष्ट नौ तथा यथाख्यात संयत के जघन्य दो और उत्कृष्ट पांच आकर्ष कहे हैं (२८) । . विवेचन-छेदोपस्थापनीय संयत उत्कृष्ट आकर्ष छह बीसी (एक सौ बीस) होते हैं । अतः बीस पथक्त्व कहे हैं। परिहारविशुद्धिक संयम एक भव में उत्कृष्ट तीन बार प्राप्त हो सकता है । सूक्ष्म-संपराय संयत के एक भव में दो बार उपशम-श्रेणी का सम्भव हाने से और प्रत्येक श्रेणी में संक्लिश्यमान और विशुद्धयमान-ये दो प्रकार के मूक्ष्म-संपराय होने से उत्कष्ट चार बार सूक्ष्म-संपरायपन की प्राप्ति होती है । यथाख्यात संयत के दो बार उपशम-श्रेणी का सम्भव होने से दो आकर्ष (चारित्र प्राप्त होते हैं।
छेदोपस्थापनीय संयत के अनेक भव में नौ सो से ऊपर और एक हजार से कम आकर्ष कहे हैं। इसकी संगति इस प्रकार है ;-मान लिया जाय कि एक भव में छह बीसी आकर्ष होते हैं। उनको आठ भवों के साथ गुणित करने पर ५६० होते हैं । सम्भावना मात्र को
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