SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ७ भव द्वार ३४७७ ___ कठिन शब्दार्थ--सण्णोव उत्त-- गंज्ञा के उपयोग से युक्त होना। आहारादि में आसक्त-अनुरक्त होना । ___ भावार्थ-६७ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत, संज्ञोपयुक्त (आहारादि संज्ञा में आसक्त) होते हैं या नोसंज्ञोपयुक्त ? ६७ उत्तर-हे गौतम ! वे संज्ञोपयुक्त होते हैं इत्यादि बकुश के समान । इसी प्रकार यावत् परिहार विशुद्धिक संयत पर्यन्त । सूक्ष्म-संपराय संयत और यथाख्यात संयत को, पुलाक के समान जानना चाहिये (२५) । ६८ प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! किं आहारए होजा, अणा. हारए होज्जा ? ____६८ उत्तर-जहा पुलाए । एवं जाव सुहुमसंपराए । अहक्खायसंजए जहा सिणाए (२६)। भावार्थ-६८ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत, आहारक होते हैं या अनाहारक ? ६८ उत्तर-हे गौतम ! पुलाक के समान यावत् सूक्ष्म-संपराय पर्यन्त । यथाख्यात संयत, स्नातक के समान हैं (२६) । भव द्वार ६९ प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! कइ भवग्गहणाई होजा ? ६९ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं, उक्कोसेणं अट्ठ । एवं छेओवट्ठावणिए वि। . भावार्थ-६९ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत कितने भव ग्रहण करते हैं अर्थात कितने भवों में सामायिक संयम आता है ? ... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy