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________________ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ७ रांजा द्वार सामायिक संयम से आगे बढ़ कर सूक्ष्म- संपराय संयम प्राप्त करते हैं अथवा संयम परिणामों के गिर जाने से संयमासंयम या असंयम प्राप्त करते हैं और काल कर के देव बनते हैं, तो भी असंयम प्राप्त करते हैं । ३४७६ छेदोपस्थापनीय संयत अपना संयम छोड़ते हुए सामायिक संयम स्वीकार करते हैं। जैसे कि प्रथम तीर्थंकर के शासनवर्ती साधु, दूसरे तीर्थंकर के शासन को स्वीकार करते समय छेदोपस्थापनीय संयम छोड़ कर सामायिक संयम प्राप्त करते हैं अथवा छेदोपस्थापनीय संयम छोड़ते हुए साधु, परिहारविशुद्धिक संयम स्वीकार करते हैं, क्योंकि छेदोपस्थापनीय संयत ही परिहारविशुद्धिक संयम स्वीकार करने के योग्य होते हैं इत्यादि । परिहारविशुद्धिक संयत, परिहारविशुद्धिक संयम छोड़ कर पुनः गच्छ में आने के कारण छेदोपस्थापनीय संयम स्वीकार करते हैं अथवा उस अवस्था में कालधर्मं कों प्राप्त हो जायें, तो देवों में उत्पन्न होते हैं । अतएव असंयम को प्राप्त करते हैं । सूक्ष्म- संपराय संयत, श्रेणी से गिरते हुए सूक्ष्म संपराय संयम छोड़ कर, यदि वे पहले सामायिक संयत हो, तो सामायिक संयम प्राप्त करते हैं और यदि वे पहले छेदोपस्थापनीय संयत हो, तो छेदोपस्थापनीय संयम प्राप्त करते हैं । यदि श्रेणी ऊपर चढ़े, तो यथाख्यात संयम प्राप्त करते हैं और यदि काल करे, तो असंयम को प्राप्त होते हैं । उपशम-श्रेणी करने वाले यथाख्यात संयत, श्रेणी से गिरने पर यथाख्यात संयम त्यागते हुए सूक्ष्म- संपराय संयम प्राप्त करते हैं और उस समय मरण हो जाय, तो देवों में उत्पन्न होने के कारण असंयम प्राप्त करते हैं, यदि स्नातक हों, तो सिद्धिगति प्राप्त करते हैं । संज्ञा द्वार Jain Education International ६७ प्रश्न - सामाइयसंजए णं भंते! किं सण्णोवउत्ते होज्जा. सणवत्ते होना ? ६७ उत्तर - गोयमा शुण्णोवउत्ते - जहा बउसो । एवं जाव परि हारविसुद्धिए । सुहुमसंपराए अहम्खाए य जहा पुलाए (२५) । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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