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भगवती मूत्र-श. २५ उ.७ उपसंपद् हान
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भावार्थ-६४ प्रश्न-हे भगवन् ! परिहारविशुद्धिक संयत किसे छोड़ते
६४ उत्तर-हे गौतम ! परिहारविशुनिक संयम छोड़ कर छेदोपस्थापनीय संयम अथवा असंयम प्राप्त करते हैं।
६५ प्रश्न-सुहुममंपराए-पुच्छा।
६५ उत्तर-गोयमा ! सुहमसंपरायसंजयत्तं जहइ, सामाइयसंजमं वा, छे ओवट्ठावणियसंजमं वा, अहक्खायसंजमं वा, असंजमं वा उव. संपन्जइ । . भावार्थ-६५ प्रश्न-हे भगवन् ! सूक्ष्म-संपराय संयत किसे छोड़ते हैं?
६५ उत्तर-हे गौतम ! वे सूक्ष्म-संपराय संयम छोड़ते हैं और सामायिक संयम, छेदोपस्थापनीय संयम, यथाख्यात संयम अथवा असंयम प्राप्त करते हैं।
६६ प्रश्न-अहक्खायसंजए-पुच्छा।
६६ उत्तर-गोयमा ! अहक्खायसंजयत्तं जहइ, सुहुमसंपरायसंजमं वा, असंजमं वा, सिद्धिगई वा उवसंपजइ (२४) ।
भावार्थ-६६ प्रश्न-हे भगवन् ! यथाख्यात संयत किसे छोड़ते हैं ? ... ६६ उत्तर-हे गौतम ! वे यथाख्यात संयम छोड़ते हैं और सूक्ष्म-संपराय संयम, असंयम अथवा सिद्ध गति प्राप्त करते हैं (२४) ।
___विवेचन-सामायिक संयत का सामायिक संयम छोड़ कर छेदोपस्थापनीय संयम स्वीकार करने का कारण यह है कि जब तेईसवें तीर्थकर के तीर्थ से चौबीसवें तीर्थकर के शासन में आते हैं, तब चतुर्याम धर्म से पंचयाम धर्म को स्वीकार करते हैं तथा प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के शासनवर्ती शिष्य को जब महाव्रत मारोपण किये जाते हैं, तब भी सामायिक संयम से छेदोपस्थापनीय संयम प्राप्त करते है अथवा श्रेणी चढ़ते हुए मुनि,
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