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भगवती मूत्र-ग. २५ उ. ७ उपसंपद्-हान
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६० उत्तर-गोयमा ! छविहउदीरए वा पंचविहउदीरए वा । छ उदीरेमाणे आउय-वेयणिजवजाओ छ कम्मप्पगडीओ उदीरेइ, पंच उदीरेमाणे आउय-वेयणिज-मोहणिजवजाओ पंच कम्मप्पगडीओ उदीरेइ ।
भावार्थ-६० प्रश्न-हे भगवन् ! सूक्ष्म-संपराय संयत, कर्म को कितनी प्रकृतियों को उदीरते हैं ?
६० उत्तर-हे गौतम ! छह या पांच कर्म-प्रकृतियों को उदीरते हैं।' छह को उदीरते हुए, आयुष्य और वेदनीय को छोड़ कर शेष छह कर्म-प्रकतियों को उदीरते हैं। पांच को उदीरते हुए आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय को छोड़ कर शेष पांच कर्म-प्रकृतियों को उदीरते हैं।
६१ प्रश्न-अहक्खायसंजए-पुच्छा।
६१ उत्तर-गोयमा ! पंचविहउदीरए वा दुविहउदीरए वा अणुदीरए वा । पंच उदीरेमाणे आउय०-सेसं जहा णियंठस्स (२३) ।
भावार्थ-६१ प्रश्न-हे भगवन् ! यथाख्यात संयत कर्म को कितनी प्रकृतियों को उदीरते हैं ?
६१ उत्तर-हे गौतम ! पांच अथवा दो को उदीरते हैं या अनुदीरक होते हैं। पांच को उदौरते हुए आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय के अतिरिक्त शेष पांच को उदोरणा करते हैं इत्यादि शेष निर्ग्रन्थ के समान (२३)।
उपसंपद-हान
६२ प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! सामाइयसंजयत्तं जहमाणे
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