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________________ ३८७२ भगवती मूत्र-दा. २५ उ. ५ कर्म-उदीरणा ५८ उत्तर-गोयमा ! सत्तविहवेयए वा, चउविहवेयए वा । सत्त वेदेमाणे मोहणिजवजाओ सत्त कम्मप्पगडीओ वेदेइ, चत्तारि वेदेमाणे वेयणिजा उय-णाम-गोयाओ चत्तारि कम्मप्पगडीओ वेदेइ (२२)। भावार्थ-५८ प्रश्न-हे भगवन् ! यथाख्यात संयत कर्म को कितनी प्रकृतियों का वेदन करते हैं ? ५८ उत्तर-हे गौतम ! सात या चार कर्म प्रकृतियों का वेदन करते हैं । जस सात का वेदन करते हैं, तो मोहनीय छोड़ कर सात का वेदन करते हैं और जब चार का वेदन करते हैं। तब वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र इन चार कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं (२२) । विवेचन--यथाख्यात संयत के निर्ग्रन्थ अवस्था में मोहनीय कर्म का उपशम या क्षय हो जाने से मोहनीय को छोड़ कर शेष सात कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं और स्नातक अवस्था में घाती-कर्मों का क्षय हो जाने से चार अघाती-कर्मों का ही वेदन करते हैं। कर्म-उदीरणा ५९ प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ उदीरेइ ? ५९ उत्तर-गोयमा ! सत्तविह-जहा बउसो। एवं जाव परिहारविमुद्धिए । भावार्थ-५९ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत कर्म की कितनी प्रकृतियों की उदीरणा करते हैं ? ___५९ उत्तर-हे गौतम ! सात कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करते हैं इत्यादि बकुश के समान यावत् परिहारविशुद्धिक संयत पर्यन्त । ६० प्रश्न-मुहुमसंपराए-पुच्छा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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