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भगवती मूत्र-दा. २५ उ. ५ कर्म-उदीरणा
५८ उत्तर-गोयमा ! सत्तविहवेयए वा, चउविहवेयए वा । सत्त वेदेमाणे मोहणिजवजाओ सत्त कम्मप्पगडीओ वेदेइ, चत्तारि वेदेमाणे वेयणिजा उय-णाम-गोयाओ चत्तारि कम्मप्पगडीओ वेदेइ (२२)।
भावार्थ-५८ प्रश्न-हे भगवन् ! यथाख्यात संयत कर्म को कितनी प्रकृतियों का वेदन करते हैं ?
५८ उत्तर-हे गौतम ! सात या चार कर्म प्रकृतियों का वेदन करते हैं । जस सात का वेदन करते हैं, तो मोहनीय छोड़ कर सात का वेदन करते हैं
और जब चार का वेदन करते हैं। तब वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र इन चार कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं (२२) ।
विवेचन--यथाख्यात संयत के निर्ग्रन्थ अवस्था में मोहनीय कर्म का उपशम या क्षय हो जाने से मोहनीय को छोड़ कर शेष सात कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं और स्नातक अवस्था में घाती-कर्मों का क्षय हो जाने से चार अघाती-कर्मों का ही वेदन करते हैं।
कर्म-उदीरणा
५९ प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ उदीरेइ ?
५९ उत्तर-गोयमा ! सत्तविह-जहा बउसो। एवं जाव परिहारविमुद्धिए ।
भावार्थ-५९ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत कर्म की कितनी प्रकृतियों की उदीरणा करते हैं ?
___५९ उत्तर-हे गौतम ! सात कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करते हैं इत्यादि बकुश के समान यावत् परिहारविशुद्धिक संयत पर्यन्त ।
६० प्रश्न-मुहुमसंपराए-पुच्छा।
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