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भगवती गूत्र-श. २५ उ. ७ कर्म-घेदन
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५६ उत्तर-गोयमा ! आउय-मोहणिजवजाओ छ कम्मप्पगडीओ बंधइ । अहक्खाएसंजए जहा सिणाए (२१)।
भावार्थ-५६ प्रश्न-हे भगवन् ! सूक्ष्म-सम्पराय संयत कर्म-प्रकृतियां कितनी बांधते हैं ?
५६ उत्तर-हे गौतम ! आयुष्य और मोहनीय कर्म को छोड़ कर शेष छह कर्म-प्रकृतियां बांधते हैं। यथाख्यात संयत के बन्ध स्नातक के समान है (२१)।
विवेचन--आयुष्य कर्म का बन्ध सातवें अप्रमत्त गुणस्थान तक होता है । सूक्ष्मसंपराय संयत दसवें गुणस्थानवर्ती होते हैं, इसलिये वे आयुष्य कर्म का बन्ध नहीं करते तथा वादर कषाय का उदय न होने से मोहनीय कर्म का बन्ध भी नहीं करते । अत: इन दो के अतिरिक्त शेप छह कर्म-प्रकृतियों का बन्ध करते हैं ।
कर्म-वेदन
५७ प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ वेदेह ?
५७ उत्तर-गोयमा ! णियमं अट्ठ कम्मप्पगडीओ वेदेइ । एवं जाव सुहुमसंपराए ।
भावार्थ-५७ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत, कर्म को कितनी प्रकृतियों का वेदन करते हैं ?
५७ उत्तर-हे गौतम ! नियम से (अवश्य) आठ कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं । इसी प्रकार यावत् सूक्ष्म-सम्पराय संयत तक।
५८ प्रश्र-अहक्खाए-पुच्छा।
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