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________________ ३४७० २५ उ.५ कर्म बन्ध विवेचन सूक्ष्म-संपराय मंयत जब श्रेणी चढ़ते हैं, तब वर्द्धमान परिणाम वाले होते हैं और जब श्रेणी से गिरते हैं, तब हीयमान परिणाम वाले होते हैं. किन्तु उस गुणस्थान का स्वभाव ही ऐसा होता है कि जिसमें अवस्थित परिणाम नहीं होते । - सूक्ष्म-संपराय संयत का वर्द्धमान परिणाम जघन्य एक समय मृत्यु की अपेक्षा से होता है, वर्द्धमान परिणाम को करने के एक समय बाद ही उनका मरण हो जाय, तव जघन्य परिणाम होता है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त वर्द्धमान परिणाम तो उस गुणस्थान की स्थिति हा है । इसी प्रकार हीयमान परिणाम के विषय में भी समझना चाहिये। जो यथाख्यात संयत, केवलज्ञान को प्राप्त करते हैं और जो शैलेशी अवस्था को प्राप्त होते हैं, उनका वर्द्धमान परिणाम जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त रहता है । उसके बाद उसका व्यवच्छेद हो जाता है । अवस्थित परिणाम जघन्य एक समय उस अपेक्षा मे घटित होता है कि उपशम अवस्था प्राप्ति के प्रथम समय के बाद ही उसका मरण हो जाय । उत्कृष्ट अवस्थित परिणाम देशोन पूर्वकोटि उस अपेक्षा से घटित होता हैं, जबकि पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाला मातिरेक आठ वर्ष की उम्र में संयम अंगीकार कर के शीघ्र ही केवलज्ञान प्राप्त कर ले। कर्म-बन्ध ५५ प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ बन्धइ ? ५५ उत्तर-गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबधए वा एवं जहा बउसे । एवं जाव परिहारविसुद्धिए । भावार्थ-५५ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत, कर्म-प्रकृतियां कितनी बांधते हैं ? ५५ उत्तर-हे मौतम ! सात या आठ कर्म-प्रकृतियां बांधते हैं इत्यादि बकुशवत् । इसी प्रकार यावत् परिहारविशुद्धिक संयत पर्यन्त । ५६ प्रश्न-सुहुमसंपरायसंजमे-पुच्छा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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