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भगवती सूत्र - श. २५ उ. ७ कपाय द्वार
उत्ते होजा (१७) ।
भावार्थ - ४५ प्रश्न - हे भगवन् ! सामायिक संयत, साकारोपयोग युक्त होते हैं या अनाकारोपयोग युक्त ?
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४५ उत्तर - हे गौतम! साकारोपयोग युक्त इत्यादि पुलाकवत् । इसी प्रकार यावत् यथाख्यात संयत पर्यन्त । किन्तु सूक्ष्म- सम्पराय संयत एक साकारोपयोग वाले ही होते हैं, अनाकारोपयोगी नहीं होते (१७) ।
विवेचन - सामायिक संयत आदि में साकारोपयोग और अनाकारोपयोग दोनों उपयोग होते हैं, परन्तु सूक्ष्म - सम्पराय संयत में एक साकारोपयोग ही होता है, अनाकारोपयोग नहीं होता । क्योंकि सूक्ष्म- सम्पराय संयत साकारोपयोग में ही दसवें गुणस्थान में प्रवेश करते हैं और साकारोपयोग का समय पूरा होने से पहले ही वे दसवें गुणस्थान को छोड़ देते हैं । इस गुणस्थान का स्वभाव ही ऐसा हैं ।
कषाय द्वार
४६ प्रश्न – सामाइयसंजए णं भंते! किं सकसायी होजा, अकसायी होजा ?
४६ उत्तर - गोयमा ! कसायी होज्जा, णो अकसायी होनाजहा कसायकुसीले । एवं छेओक्टुावणिए वि । परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए ।
भावार्थ - ४६ प्रश्न - हे भगवन् ! सामायिक संयत, सकषायी होते हैं या अकषायी ?
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४६ उत्तर - हे गौतम! सकषायी होते हैं, अकषायी नहीं होते इत्यादि कषाय- कुशीलवत् ( चार, तीन और दो कषायों में होते हैं । किन्तु एक कषाय में नहीं होते ) । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय भी । परिहारविशुद्धिक संयत Set कथन पुलाक के समान है ।
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