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________________ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ७ योग: द्वार, उपयोग द्वार हीन शुद्धि वाला होता है और दूसरा संयत कुछ अधिक शुद्धि वाला होता है, तब उन दोनों सामायिक संयतों में से एक हीन और दूसरा अधिक कहलाता है । इस हीनाधिकता में छह स्थान पतितता होती है । जब दोनों के संयम स्थान समान होते हैं, तब तुल्यता होती है । ३४६४ योग द्वार ४४ प्रश्न - सामाइयसंजए णं भंते! किं सजोगी होजा, अजोगी होजा ? ४४ उत्तर - गोयमा ! सजोगी जहा पुलाए । एवं जाव सुहुमसंपरा संजए । अहक्खाए जहा सिणाए (१६) । भावार्थ - ४४ प्रश्न - हे भगवन् ! सामायिक संयत, सयोगी होते हैं या अयोगी ? ४४ उत्तर - हे गौतम! सयोगी होते हैं इत्यादि पुलाकवत् । इसी प्रकार यावत् सूक्ष्म-सम्पराय संयत तक । यथाख्यात संयत, स्नातक के समान है ( १६) । " उपयोग द्वार ४५ प्रश्न - सामाइयसंजए णं भंते! किं सागारोवउत्ते होजा, अणागारोवउत्ते होजा ? ४५ उत्तर - गोयमा ! सागारोवउत्ते जहा पुलाए | एवं जाव अहम्खाए । णवरं सुहुमसंपराए सागारोवउत्ते होजा, णो अणागारो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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